रांची: झारखंड में विधानसभा चुनावी घमासान चरम पर है। 2019 के नतीजों से सबक लेते हुए भाजपा और कांग्रेस, दोनों पार्टियां उन सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, जहां पिछली बार विरोधियों ने बाजी मारी थी। इस बार, भाजपा और कांग्रेस की रणनीति का केंद्र, वही ‘खोए किले’ हैं, जिन पर विजय पाना दोनों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया है।
भाजपा इस बार कोल्हान के मैदान में कमर कस कर उतरी है, जहां पिछली बार की 14 में से एक भी सीट पर वो झंडा नहीं गाड़ पाई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 नवंबर को चाईबासा और गढ़वा में जनसभा करेंगे, जबकि गृहमंत्री अमित शाह धालभूमगढ़, सिमरिया और बरकट्ठा में अपने सियासी दांव-पेच आजमाएंगे। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह भी जमशेदपुर में सभा करेंगे, जहां की पूर्वी और पश्चिमी सीटें भाजपा के हाथ से बाहर हैं।
दूसरी तरफ, कांग्रेस ने भी ‘खोए किले’ के पुनर्निर्माण की मुहिम छेड़ी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे 5 नवंबर को कांके और मांडू में जनसभा करेंगे। ये वही क्षेत्र हैं, जहां 2019 में भाजपा को जीत मिली थी लेकिन इस बार यहां कांग्रेस उम्मीदवार चुनावी रण में हैं। राहुल गांधी का रोड शो और सभाएं भी लोहरदगा, सिमडेगा, जमशेदपुर, डालटनगंज और हजारीबाग में प्रस्तावित हैं, जहां उनकी पार्टी के उम्मीदवार अपना दमखम दिखाने को तैयार हैं।
साफ है कि इस बार हर दल ने अपने ‘खोए किलों’ की पुनः प्राप्ति के लिए हर मुमकिन दांव खेलना शुरू कर दिया है। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, हर किसी की नजर उन मजबूत गढ़ों पर है, जहां इस बार मतदाताओं के दिल जीतकर विरोधी दल को मात देने का मौका है।