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Tuesday, April 16, 2024

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अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने फिर बढ़ाई ब्याज दरें, भारत पर पड़ेगा असर

नई दिल्ली : अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने एक बार फिर ब्याज दरों में इजाफा कर दिया है

और इसका असर आज ग्लोबल बाजारों पर देखा जाएगा.

अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने लगातार दूसरे महीने ब्याज दरों में ये इजाफा किया है

जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर तो असर आएगा ही,

दुनिया के कई बाजारों पर निगेटिव असर आने की आशंका है.

तीन चौथाई फीसदी का इजाफा

अमेरिका में महंगाई 41 सालों के उच्च स्तर पर है और इसके पिछले आंकड़ों में ये 9.1 फीसदी पर थी.

इसी को मद्देनजर रखते हुए फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में

ये एकमुश्त तीन चौथाई फीसदी का इजाफा कर दिया है.

ये ब्याज दरें साल 1994 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर हैं.

इससे पिछली फेड मीटिंग में भी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी थी.

फेड कमिटी ने क्या कहा

फेडरल ओपन मार्केट कमेटी ने कहा कि अमेरिका में महंगाई दरें बढ़ी हुई हैं, कोरोना महामारी, खाने पीने के सामान की ऊंची कीमतें और ऊर्जा की कीमतों का असर इन ब्याज दरों पर देखा जा रहा है. वहीं व्यापक मूल्य दबाव सप्लाई और डिमांड के असंतुलन को दर्शाती है जिसे काबू में करने के लिए फेडरल रिजर्व ने ये ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का फैसला लिया है. फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पावेल ने कहा है कि अमेरिकी इकोनॉमी के लिए सबसे बड़ा जोखिम लगातार बढ़ती महंगाई दर होगी. हालांकि आर्थिक मंदी को लेकर फेड के अध्यक्ष ने इतनी चिंता नहीं जताई है.

इस साल चार बढ़ी दरें

अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने पिछली बार जून में और इस बार जुलाई में लगातार 0.75-0.75 फीसदी की बढ़ोतरी के बाद सवा महीने के अंदर ही ब्याज दरों में 1.50 फीसदी का इजाफा कर दिया है. इसके अलावा इस साल की बात करें तो चौथी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी का फैसला फेडरल रिजर्व ने किया है.

फेडरल रिजर्व के फैसले का भारत पर असर

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले के बाद भारत के ऊपर भी इसका बड़ा असर देखने को मिल सकता है. सबसे पहले तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की आगामी 3-5 अगस्त को होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट बढ़ने की आशंका है. इससे देश में कर्ज महंगे होंगे और नागरिकों के लिए ईएमआई बढ़ने की संभावना है. वहीं डॉलर के चढ़ने से रुपये के और नीचे जाने का डर बना हुआ है जो पहले ही 80 प्रति डॉलर के स्तर को छू चुका है. भारत के लिए और भी मोर्चों पर कठिनाई बढ़ने की आशंका है जैसे इंपोर्ट के खर्च और बढ़ सकते हैं.

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