रांची: झारखंड की राजनीति में एक वोट की अहमियत कितनी भारी होती है, यह अक्सर चुनावी नतीजों में स्पष्ट दिखाई देता है। यहां जीत और हार का फासला कभी-कभी एक फीसदी से भी कम होता है, जिससे प्रत्याशियों के सपने चुराए जा सकते हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा, राजद, कांग्रेस और आजसू के कई उम्मीदवारों ने यह अनुभव किया, जब वे मामूली अंतर से जीतने का मौका गंवा बैठे।
2019 में, कई ऐसे दिग्गज नेता थे जो मात्र एक वोट के फासले से विधानसभा की कुर्सी से चूक गए। राजद के अमिताभ कुमार को कोडरमा में 1,797 मतों से हार का सामना करना पड़ा। मांडू में आजसू के जलेश्वर महतो ने 2,062 मतों के छोटे अंतर से जीत गंवाई। इसी तरह, कांग्रेस के रोशन लाल चौधरी को बाघमारा में 824 मतों की कमी से निराशा झेलनी पड़ी। इन नतीजों ने साबित किया कि झारखंड की राजनीति में एक वोट का मूल्य कितना अनमोल है।
2014 के चुनावों में भी कुछ ऐसा ही हुआ। झामुमो के लोबिन हेम्ब्रम ने बोरियो में केवल 712 मतों से हार झेली। भाजपा के निरसा प्रत्याशी को 1,035 मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। हर चुनावी सीजन में यह स्पष्ट होता है कि जीत का मंत्र हमेशा एक ही होता है: “हर वोट मायने रखता है।”
इन चुनावों में जीत-हार का यह उतार-चढ़ाव दर्शाता है कि एक वोट की अहमियत कितनी अधिक है। कभी-कभी बागी प्रत्याशी या भीतरघात भी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। मतगणना के दौरान उम्मीदवारों का आत्मविश्वास बार-बार डगमगाता रहा। जो पहले राउंड में जीत के सपने देख रहे थे, वे अगले राउंड में निराशा का सामना करते रहे।
झारखंड में चुनावी परिदृश्य हमेशा बदलता रहता है, लेकिन हर वोट की कीमत और उसकी अहमियत स्थायी रहती है। प्रत्याशियों के लिए यह आवश्यक है कि वे केवल अपने समर्थकों के बीच मजबूत बने, बल्कि हर मतदाता के दिल में भी जगह बनाएं। इस सियासी संग्राम में, एक वोट ही जीत की कहानी लिख सकता है, और यही झारखंड की राजनीति की असली पहचान है।