मुंबई : कवि प्रदीप के लिखे गीत ‘ए मेरे वतन के लोगों’ को स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने गाया था. ये गीत आज भी समस्त भारतवासियों ने दिल में अनमोल धरोहर के रूप में संजो रखा हैं. आज लता मंगेशकर नहीं है तो देश रो रहा है, लेकिन देशवासियों की आंखे उस दिन भी नम हुई थी जब लता मंगेशकर ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाना तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने गाया था. गाना सुन कर नेहरू जी की आंखों में भी आंसू आ गए थे. कवि प्रदीप का लिखा हुआ ये गीत लता मंगेशकर के सुरों में अमर हो गया.
जिस गाना को कवि प्रदीप ने लिखा था आज उनका जन्मदिन है, और संयोग देखिए आज ही के दिन भारत रत्न लता मंगेशकर दुनिया को अलविदा कह गयीं. लता जी शायद स्वर्ग के किसी हिस्से में कवि प्रदीप के साथ बैठी होंगी. उन्हें उनके इस गीत के लिए बधाई देती. उन्हें आज उनके जन्मदिन की बधाई देती. प्रदीप के इस गीत के कारण आज तीनों अमर हैं- लता जी, कवि प्रदीप और इन दोनों का गाया-लिखा यह गीत भी.
दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है
कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी, 1915 को मध्य प्रदेश के बड़नगर में हुआ था. उनका निधन 11 दिसंबर 1998 को मुंबई में हुआ. कवि प्रदीप बचपन में रामचंद्र नारायण द्विवेदी के नाम से जाने जाते थे. कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से हुई. लेकिन उन्हें असली ख्याति 1943 की हिट फिल्म किस्मत के गीत ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है’ से मिली. इस गीत ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया. इस गीत को समझकर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार इतनी बौखलाई कि इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा.
लता मंगेशकर और कवि प्रदीप की जोड़ी ने इस गीत को बनाया अमर
लता मंगेशकर और कवि प्रदीप की जोड़ी जिस वजह से अमर हुई वो गीत थी ऐ मेरे वतन के लोगों… इस गीत की कहानी भी संयोग की कहानी है. दरअसल 1962 में भारत-चीन की लड़ाई के बाद के बाद सेना के जवानों को आर्थिक मदद देने के लिए फिल्म इंडस्ट्री ने एक चौरिटी शो आयोजित किया. ये शो 27 जनवरी 1963 को होने वाला था. इस शो में तत्कालीन पीएम नेहरू और राष्ट्रपति राधाकृष्णन आने वाले थे.
सिगरेट के पैकेट पर कवि प्रदीप ने लिखा गीत
इस कॉन्सर्ट के लिए दिग्गज कलाकारों को बुलाया गया. इसमें, महबूब खान, नौशाद, शंकर-जयकिशन, मदन मोहन और सी. रामचंद्र जैसे नाम शामिल थे. सी रामचंद्र संगीतकार तो उम्दा थे लेकिन इस मौके के लिए उन्हें कोई गाना नहीं मिल रहा था. ऐन मौके पर वे देशभक्ति गीतों के लिए मशहूर हो चुके कवि प्रदीप के पास पहुंचे. कहा जाता है कि ऐन मौके पर कवि प्रदीप ने उन्हें ताना मारा और कहा कि ‘फोकट का काम हो तो आते हो’. लेकिन वे गीत लिखने के लिए राजी हो गए. फिर कवि प्रदीप एक दिन मुंबई में बीच के किनारे टहल रहे थे और वहीं उन्होंने एक शख्स से कलम उधार मांग कर सिगरेट के पैकेट पर ‘ऐ मेरे वतन के लोगों…’ गीत लिखा.