नवजातों के गुंजन को बचाने के मुहिम में जुटी मोनिका गुंजन
Ranchi– यूं तो कहा जाता है कि बच्चे की किलकारियों से पूरा घर खुशियों से झुम जाता है. नवजात के स्वागत के लिए घर में तरह-तरह की तैयारियां की जाती है, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि हमारे ही समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो इन नवजातों को जिंदगी शुरु होने के पहले ही कचड़े में फेंक देते हैं.
इन नवजातों को एक सम्मानपूर्ण अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं होता. पुलिस इनको पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल तो जरुर ले जाती है, लेकिन पोस्टमार्टम के बाद अस्पताल में मर्चरी पर ही छोड़ दिया जाता है.
पालोना की ओर से इन अभागों का किया जाता है अंतिम संस्कार
इन्ही अभागे नवजातों को सम्मानपूर्ण अंतिम विदाई देने का कार्य रही है कांके निवासी मोनिका गुंजन, मोनिका पिछले सात सालों से पालोना नाम से एक मुहिम चला रही है. पालोना की ओर से इन नवजातों को सम्मानपूर्ण अंतिम संस्कार मुहैया करवाया जाता है. इस शहर के सैकड़ों लोग पालोमा के इस अभियान से जुड़े हैं.
अंतिम संस्कार ही नहीं, फेंके गए नवजातों की जिंदगी बचाने का प्रयास भी
पालोना के कार्यकर्ता ने सिर्फ अंतिम संस्कार की व्यवस्था करवाते हैं, बल्कि उनकी कोशिश नवजात को एक नयी जिंदगी भी देने की होती है, पालोमा के स्वयं सेवकों ने कई नवजातों को बचाया है, आज उनके सूझबूझ और रहम- दिली की चर्चा पूरे शहर में हो रही है.
यही कारण है कि आज राम दयाल मुंडा शोध संस्थान मोरहाबादी में वैसे सभी स्वयं सेवकों को सम्मानित किया गया. इस अवसर पर पूर्व सांसद महेश पोद्दार, डीजी रेल अनिल पाल्टा, आईएसएफ डी के सक्सेना और रांची एक्सप्रेस के पूर्व संपादक और पद्मश्री बलबीर दत्त भी मौजूद रहें.
क्यों पड़ी पालोना की आवश्यकता बता रही हैं मोनिका गुंजन
रांची जैसे शहर में पालोना की आवश्यकता, उसकी सफलता और चुनौतियों पर चर्चा करते हुए पालेमा की संचालिका मोनिका गुंजन के कहा कि हमें भूर्ण हत्या और शिशू हत्या के बीच के अन्तर को समझना होगा, कई लोग शिशु हत्या को भूर्ण हत्या समझने की भूल कर जाते है. जबकि यह दोनों अलग अलग सामाजिक समस्या है, जिस प्रकार सरकार ने भूर्ण हत्या के खिलाफ कानून का निर्माण किया है, उस प्रकार इन नवजातों को लेकर कोई कानून अपने पास नहीं हैं.