प्रेम की राजनीति: एक हास्य व्यंग्य

प्रेम की राजनीति: एक हास्य व्यंग्य

रांची: राजनीति में प्रेम और बागी नेताओं की स्थिति लगभग एक जैसी होती है। जब कोई प्रेमिका रूठती है, तो प्रेमी महाशय फौरन उसके दरवाजे पर खड़े हो जाते हैं, जैसे भाजपा के नेता बागियों के दरवाजे पर। हाल ही में एक नेता ने अपने बागी साथी से कहा, “भाई, अगर तुम निर्दलीय खड़े हुए, तो तुम तो बस हमारी वोट काटोगे, जैसे प्रेमिका अपने गुस्से में प्रेमी का गिफ्ट!”

यही तो स्थिति है इन बागियों की—हर कोई कह रहा है कि वोट कटेगा, लेकिन कोई यह नहीं समझता कि असली नुकसान तो खुद का होगा। जैसे प्रेमिका ने गिफ्ट नहीं मिलने पर ठान लिया कि वो अब रुठी रहेगी, वैसे ही ये बागी भी पार्टी से अलग होकर अपनी ही टोकरी में टमाटर डाल रहे हैं।

सीपी सिंह का कहना है, “हम इन्हें बागी नहीं कहेंगे, ये तो बस पार्टी के कार्यकर्ता हैं।” अरे भैया, जब कार्यकर्ता ही बागी बन गए हैं, तो फिर ‘प्रेमी प्रेमिकाओं के रूठने-मनाने’ का क्या हुआ? यही तो माया है राजनीति की—सब एक-दूसरे को मनाने में जुटे हैं। कोई कह रहा है, “5 साल से सरकार के खिलाफ लड़ रहे हो, अब क्यों बागी हो?” सच है, लेकिन प्रेम में भी तो यही होता है—गलती से एक बार गुस्सा हुए, और फिर पूरे 5 साल तक मनाते रहो।

कहने का तात्पर्य यह है कि नेताओं की प्रेमिका (पार्टी) रुठ गई है, और वो सारे नेता गिफ्ट देने की सोच रहे हैं। लेकिन क्या गिफ्ट से प्रेमिका मान जाएगी? बिल्कुल नहीं! जैसे ये बागी नहीं मान रहे हैं, वैसे ही प्रेमिकाएं भी एक सच्चे दिल के इकरार के बिना नहीं मानतीं।

तो, राजनीति की इस प्रेम कहानी में आखिरकार जो भी गिफ्ट देने के लिए दरवाजे पर खड़ा है, वो एक बात समझ ले—जब तक दिल की बात नहीं होगी, बागी और प्रेमिका दोनों के दिल नहीं मानेंगे। इसलिए नेताओं को सलाह है: “बागियों को मनाओ, गिफ्ट भी दो, लेकिन सबसे पहले खुद से ये सवाल करो—क्या तुम सच में चाहोगे कि वो तुम्हारे पास लौटें?”

तो इस प्रेम और राजनीति के चक्कर में, याद रखना, वोट काटने वाले बागी और रूठी प्रेमिकाएं—दुनिया में सबका एक ही फंडा है: सच्चे इरादे और दिल की बात!

आखिरकार, यही तो राजनीति और प्रेम का असली सार है।

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