रांची: झारखंड की राजनीति का ये अनोखा मैच, जहां हर चुनाव के साथ बदलती पिच पर खिलाड़ी कम स्कोर पर भी एक-दूसरे को मात देने के लिए जुट जाते हैं। पिच बिल्कुल क्रिकेट की तरह, कभी सपाट तो कभी उछाल भरी, लेकिन बॉलरों का साथ देती हुई। इस खेल में हर चुनाव में 66 सीटों का वो दिलचस्प वर्ग दिखता है, जहां मार्जिन बेहद कम रह जाता है।
इन सीटों पर अक्सर खिलाड़ी यानी प्रत्याशी, बिना बाउंड्री लगाए ही रन बटोर जाते हैं और बिना चौके-छक्के मारे ही गेम जीत लेते हैं। झारखंड में कांग्रेस, भाजपा और झामुमो की तिकड़ी ने 2005 से 2019 तक अपनी स्ट्रैटेजी में बदलाव करते हुए इस पिच पर बेहतरीन प्रदर्शन किया है।
आंकड़े बताते हैं कि 76% सीटों पर ये तीन दल 5500 से कम मार्जिन से जीतते रहे हैं। लेकिन, जैसे ही वोट छितराते हैं, छोटे दल और निर्दलीय ‘स्लॉग ओवर्स’ में आकर चार-पांच रनों की छोटी-छोटी लीड से खुद को विजेता बना लेते हैं। जनता का मन बदलने की देरी होती है कि नए खिलाड़ी मैदान में कूद पड़ते हैं और विधानसभा की सीटों पर सत्ता के चौके-छक्के लगा देते हैं।2005 से लेकर 2019 तक के चुनावी इतिहास में दो बार त्रिशंकु विधानसभा बनी, जिसमें गवर्नर का भी खेल जमता दिखा। एनडीए-यूपीए की जोड़ी, क्रीज पर आकर आउट होती रही।
2005 में चार मुख्यमंत्री बने, तो 2009 में भाजपा और झामुमो ने विरोधी होकर भी हाथ मिलाया, जैसे पिच पर विरोधी टीमें ओवरशॉट से बचाने के लिए रन बटोरते हैं। 2014 में झारखंड की पिच ने पहली बार राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया और एक स्थायी सरकार को मौका दिया।
हर चुनाव में उत्तरी छोटानागपुर और कोल्हान की कुछ सीटें एक हाई-प्रेशर ओवर की तरह काम करती हैं। यहां तिकोनी लड़ाई में प्रत्याशी, आखिरी गेंद पर छक्के की उम्मीद लगाए बैठते हैं। कई बार यहां रन इतना कम होता है कि एक ‘सिंगल’ से ही सीट पर कब्जा हो जाता है। इस बार की फैंटेसी टीम में कौन सा खिलाड़ी बॉलिंग करेगा और कौन बैटिंग, यह देखना दिलचस्प होगा।
आगामी चुनावों में भी झारखंड की यह पिच छितराए वोटरों का रोमांच बनाए रखेगी। छोटे दल अपने छोटे-छोटे मार्जिन के साथ चौंकाने वाली जीत का सपना देख रहे हैं। पिच का मिजाज अभी भी बॉलरों का साथ देने वाला है, लेकिन बल्लेबाज अपने स्कोर को लेकर सतर्क हैं।