पटना: बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बिहार में चुनावी वर्ष को देखते हुए एक बार फिर आरक्षण का मुद्दा उठाया है। चिराग ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक पत्र लिखा है जिसमें विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर आरक्षण विधेयक पास करवाने और संविधान की नौंवी अनुसूची में डालने की अनुशंसा की मांग की है।
तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने पत्र के माध्यम से याद दिलाया है कि 2023 में महागठबंधन की सरकार में राज्य में जातिय गणना करवाई और फिर उसके आधार पर विभिन्न जातियों की जनसंख्या और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर पिछड़े, अति पिछड़े, अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की सीमा 65 प्रतिशत तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था।
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बिहार सरकार के इस एतिहासिक निर्णय से राज्य के दलित आदिवासी, पिछड़े, अति पिछड़े के साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को लाभ मिलना सुनिश्चत हुआ था। बाद में पटना हाई कोर्ट ने सरकार के इस निर्णय को रद्द कर दिया जबकि इसी तर्ज पर तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण पिछले 35 वर्षों से दी जा रही है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री से मांग की कि एक सप्ताह के अंदर एक सर्वदलीय समिति बनाई जाये जो अध्ययन के आलोक में अपना रिपोर्ट देगी।
रिपोर्ट के आधार पर विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाकर नई विधेयक पास कराई जाये और उसे संविधान की नौंवी अनुसूची में डालने की अनुशंसा की जाये ताकि फिर से भाजपा के लोग इसे कोर्ट में चुनौती न दे सकें। तेजस्वी ने राज्य की एनडीए सरकार को भाजपा और आरएसएस की नीतियों पर चलने वाली सरकार बताते हुए कहा कि अगर मुख्यमंत्री ऐसा नहीं करते हैं तो यह साफ हो जायेगा कि वे जान बुझ कर आरक्षण के मामले को लटका और भटका रहे हैं।
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अपने पत्र में तेजस्वी ने महागठबंधन सरकार के दौरान राज्य में दी गई नौकरियों की भी चर्चा की और लिखा कि हमने 17 महीने की सरकार में लाखों लोगों को नौकरी दी और करीब साढ़े तीन लाख नौकरी प्रक्रियाधीन थी।
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