रांची: 80 साल की उम्र पार कर चुके चाचा सीपी सिंह की गद्दी की जिद अब राजनीति के अखाड़े में एक नई बहस का विषय बन चुकी है। जब आमतौर पर लोग रिटायरमेंट की योजना बनाते हैं, तब चाचा सीपी सिंह ने फिर से चुनावी मैदान में कदम रखा है। यह सच है कि उम्र का असर अक्सर दिखता है, लेकिन चाचा की जिद तो कुछ और ही कहती है।
महुआ मांजी, जिसे हम दीदी कह सकते हैं, इस बार चाचा की गद्दी को हिलाने के लिए पूरी तैयारी में हैं। पिछले चुनाव में जब उन्होंने सीपी सिंह के खिलाफ नजदीकी मुकाबला किया, तो इस बार की तैयारी और भी मजबूत नजर आ रही है। दीदी का आत्मविश्वास कहता है, “एक बार तो चाचा को हराने का मौका देना ही चाहिए!”
चाचा सीपी सिंह की गद्दी के लिए यह जंग उनके लिए आसान नहीं होगी। उम्र का असर चाहे जितना भी हो, लेकिन राजनीति में चाचा की लंबे अनुभव की बात भी कम नहीं है। उनकी जीत का गणित 28 साल का लंबा इतिहास है, लेकिन दीदी के इरादे अब चट्टान की तरह मजबूत हैं।
“गद्दी पर बैठा रहना आसान है, लेकिन गद्दी पर बैठकर काम करना एक अलग कला है!” दीदी की रणनीति साफ है—वोटरों को समझाना कि बदलाव की हवा में उड़ने का समय आ गया है। जनता अब उस पुराने चेहरे से थक चुकी है, जिसे वे वर्षों से देख रहे हैं।
चाचा की राजनीति के ताने-बाने में गहरी रूचि रखने वालों को पता है कि उनकी रणनीतियां भी अब पुरानी हो गई हैं। “समय का पहिया घूमा है, लेकिन क्या चाचा ने खुद को बदला है?” यही सवाल अब रांची की गलियों में गूंज रहा है।
चाचा के पास अनुभव है, लेकिन दीदी का जज्बा भी तो कमाल का है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या चाचा अपनी गद्दी को बचा पाएंगे या दीदी एक नई राजनीति की बुनियाद रख पाएंगी।
“बूढ़े बाघ की खरोंच भी खतरनाक होती है,” लेकिन इस बार क्या दीदी चाचा को हरा पाएंगी? समय बताएगा, लेकिन राजनीति में उम्र केवल एक संख्या है, और चुनाव में जीत-हार का फैसला जनता के हाथ में है।