बिना प्लान के सरकार करवाती है कार्य, पहले बनवाती है फिर तुड़वाती है

रांची : जनता की गाढ़ी कमाई को सरकार के द्वारा किस तरह से बर्बाद किया जाता है इसका सबसे बड़ा उदारहण है कांटाटोली का ओवरब्रिज है. सरकार पहले गढ्ढ़े खुदवाती है फिर उसे भरवाती है और फिर गढ्ढ़े खुदवायेगी और इसी में करोड़ों रुपए की खर्च हो जाती है.

शहर का सबसे व्यस्तम चौराहा कांटाटोली चौक है. जाम से वाहनों की काफी लंबी कतार लग जाती है. इस चौराहे को क्रॉस करने में घंटों लग जाते हैं.

नए सिरे से बनाने की तैयारी में जुटी सरकार

हेमन्त सरकार इस ओवरब्रिज को नए सिरे से बनाने की तैयारी में जुट गई है. लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो उन्हें अभी भी भरोसा नहीं है कि यह बन पाएगा, सरकार भले ही बदल गयी है लेकिन लोगों का मानना है कि ये ओवरब्रिज सिर्फ लूट का अड्डा बन कर रह गया है. थोड़े से काम कर बंद कर दिया जाता है. दूसरे राज्यों से आने वाले लोग भी शहर में इस चौराहे से इंटर करते हैं. यह चौराहा शहर के विभिन्न इलाके के लिए सड़क जाती है.

अब तक तीन बार तैयार किया गया है डीपीआर

  • 2012- अर्जुन मुंडा सरकार के कार्यकाल में पहली डीपीआर बनी.
  • 2015- रघुवर दास सरकार के कार्यकाल में दूसरी बार बनाई गई.
  • 2021- अब हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल में तीसरी बार बनेगी.
  • 2017 में जुडको ने शुरू किया था फ्लाईओवर बनाने का काम.

दरअसल 2017 की शुरुआत में ही कांटाटोली फ्लाईओवर बनाने का काम नगर विकास विभाग के तहत जुडको ने शुरू किया था. शुरुआत में जमीन अधिग्रहण सबसे बड़ी समस्या बनी, लेकिन इसे सुलझा लिया गया. इसके बावजूद डीपीआर में ही गलती सामने आ गई, जिसके बाद मुख्य डीपीआर की राशि 40 करोड़ से बढ़कर 84 करोड़ हो गई. फिर कई तकनीकी कमियों को देख निर्माण कार्य का काम रूक गया.

अब तक 20 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान

84 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में लगभग 20 करोड़ रुपये अब तक खर्च होने का अनुमान है. लेकिन निर्माण के नाम पर एक भी पीलर सही तरीके से खड़ा नहीं हो सका है. ऐसे में फिर से नए सिरे से निर्माण कार्य शुरू होने पर लागत राशि में करोड़ों रुपए का इजाफा हो गया है. अब इसकी लंबाई भी बढ़ाई गई है और लागत 224 करोड़ तक पहुंच गयी है.

अब ये लिया गया निर्णय

पहले कांटा टोली फलाईओवर खादगढ़ा बस स्टैंड के सामने से कोकर ओर शांति नगर तक बनना था लेकिन यातायात की समस्या से निजात दिलाने के लिए अब योगदा सत्संग मठ से गुजरते हुए कोकर तक फ्लाइओवर का निर्माण कराने का फैसला लिया गया है. अब देखना होगा कि सरकार के द्वारा जो इस ओवरब्रिज को बनाने का लक्ष्य दो वर्ष का रखा गया है क्या इस बार भी इस समय सीमा में तैयार हो पाता है या आगे भी लोगों को परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है.

 

रिपोर्ट : मदन सिंह

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