रांची: गोड्डा से संथाल की सियासत का तापमान इन दिनों जून-जुलाई की धूप से भी ज़्यादा तप रहा है। एक तरफ कॉलेज की मान्यता गई, दूसरी तरफ नेताजी के बेटे की सक्रियता बढ़ गई। लगता है राजनीति में अब जेनरेशन शिफ्ट का टाइम आ गया है – बाप मंत्री, बेटा तंज़ीदा ट्वीटर योद्धा!
गोड्डा का पारसपानी एक बार फिर चर्चा में है। वजह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि सियासी तूफान है – नाम है स्टेट होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज और उसके इर्द-गिर्द मंडराता मान्यता संकट। लेकिन सियासी डॉक्टरों ने इलाज शुरू कर दिया है।
अब देखिए ना, मंत्री संजय यादव के बेटे रजनीश यादव मैदान में ऐसे उतरे जैसे कॉलेज की मान्यता नहीं, उनकी “राजनीतिक प्रतिष्ठा” दांव पर हो। खुद बीमार हैं लेकिन इलाज किसी और का कर रहे हैं – वो भी संस्थान का, और वो भी बगैर किसी संवैधानिक पद के! तंज भी ऐसा कि अमित मंडल की तबीयत बिगड़ जाए – “इस काम के लिए मुझे संवैधानिक पद की आवश्यकता नहीं है!”
अब पूर्व विधायक अमित मंडल भी पीछे क्यों रहें? उन्होंने कहा – “हम चुनाव हार गए हैं लेकिन सवाल उठाना हमारा धर्म है।” उन्होंने मंत्री संजय यादव को “सरस्वती पूजा का फीता काटने वाला नेता” कह कर पूरे घटनाक्रम को शास्त्रीय व्यंग्य का रूप दे दिया।
राजनीति में ये एक नई परंपरा है – जब बेटा बोले और मंत्री चुप रहे, जब विपक्षी बोले और सत्ता में बैठे सवालों की रील बनाते रहें। अमित मंडल ने कहा कि अगर मंत्री जी ने कॉलेज की बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान दिया होता तो यह दिन न देखना पड़ता। वहीं, मंत्री पुत्र कह रहे हैं – “मैं खुद विभागीय सचिव और निदेशक से बात करके आया हूं, 30 दिन का अल्टीमेटम है – मान्यता फिर से लाई जाएगी।”
अब सवाल उठता है – मान्यता पहले जाएगी या फिर अगले चुनाव की तैयारी शुरू होगी?
मामला और भी दिलचस्प तब बन गया जब स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी भी इस होम्योपैथिक पेंच में घुस आए। उन्होंने गेंद केंद्र के पाले में फेंक दी – “आयुष मंत्रालय ज़िम्मेदार है, झारखंड सरकार नहीं।”
राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं – “यह मान्यता नहीं, चुनावी नब्ज़ की जांच है।” जनता को भले ही दवाइयों की ज़रूरत हो, नेताओं को हेडलाइन की लत लगी है।
गोड्डा में मान्यता रद्द हो, सियासी जुबानी जंग चले, पर छात्रों का भविष्य वहीं का वहीं ठहरा रहे – यही झारखंड की राजनीति की होम्योपैथिक विडंबना है।