डिजीटल डेस्क : Emerging Popular Youth Leader – चिराग पासवान बने बिहार की सियासत में नए तुरूप का इक्का, यह कहना गलत नहीं होगा। वर्ष 2014 में पिता धुरंधर सियासी पिता रामबिलास पासवान की सलाह पर राजनीति में कदम रखने वाले आज्ञाकारी बेटे की तरह चिराग के लिए करियर के रूप में सियासत आसान नहीं रही। पिता की छत्रछाया गई तो पराभव का उन्होंने वह दौर देखा जो उनके लिए अकल्पनीय था। मां के संबल और पिता की सियासी विरासत के भरोसे वह समय के थपेड़ों के झेलते हुए टिके रहे तो जिस एनडीए को उन्होंने मजबूरी में छोड़ तक दिया था, उसी एनडीए ने साल भर पहले पुचकारते हुए अपने पाले में किया। अब उसी एनडीए के लिए सियासी पिच 100 फीसदी स्ट्राइक रेट से बिहार में बैटिंग की तो लगातार तीसरी बार केंद्र में बनी पीएम नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में उन्हें न केवल कैबिनेट मंत्री का रुतबा मिला बल्कि युवाओं के बीच के इस क्रेजी युवा सियासी चेहरे को आमजन से सीधे जुड़ाव वाला खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय मिला है ।
दलित वोट बैंक की सीमाओं के बाहर भी है चिराग पासवान की सहज स्वीकार्यता
भले ही बाकी चीजों में बिहार पिछड़ा कहा जाता हो लेकिन सियासत में भूचाल लाने के लिए जो रसद होनी चाहिए, वह बिहार और बिहारियों में बखूबी मिलती है। दिल्ली की सत्ता का रास्ता भले यूपी से होकर जाता है लेकिन बिहार इस रास्ते का इस्तेमाल करने कितना बेजोड़ रहा है वह देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से लेकर जेपी, जगजीवन राम, कर्पूरी ठाकुर, जार्ज फर्नांडीज से होकर लालू और नीतीश कुमार की पीढ़ी तक के बारे में सभी जानते हैं। लोग यह भी नहीं भूले हैं कि राम मंदिर आंदोलन के नाम पर रथयात्रा को लेकर निकले लालकृष्ण आडवाणी को बिहार में न रोका गया होता तो भाजपा आज देश की सियासत में जिस विराट स्वरूप में उभर चुकी है, वैसा उभार पाने में भाजपा को काफी पापड़ बेलने पड़ सकते थे। अब उसी धरती पर रामबिलास पासवान भी जेपी आंदोलन से निकले राजनेता होते हुए भी सियासत में हर दल की केंद्रीय सत्ता में खुद को फिट करने की जिस कला से माहिर थे, वैसा विरला ही देखने को मिलता है। अब उसी स्व. रामबिलास के बेटे को सियासत में खुद को स्थापित होने के दौर में इतने कांटे चुभे कि उनसे निजात पाने के क्रम में वह मंझे हुए युवा आत्मनिर्भर राजनेता के रूप में उभर चुके हैं। दलित वोट बैंक उनका अपना माना जाता है लेकिन उन्होंने खुद से उस सीमित दायरे से बाहर निकालते हुए न केवल खुद का बल्कि अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) रामबिलास की भी वोटरों के हर वर्ग में आसानी से स्वीकार्यता बना दिया है।
पिता की सलाह पर अभिनय का मोह त्याग सियासत में आए चिराग
धुरंधर राजनेता रहे रामबिलास पासवान की तरह चिराग पासवान सियासी करियर में नहीं आना चाहते थे। वह बालीवुड में अभिनेता बनने का शौक पाले हुए थे। अभिनेत्री कंगना रणौत के साथ मिले ना मिले हम शीर्षक वाली फिल्म उन्होंने की लेकिन वह चली नहीं। असफलता हाथ लगने पर पिता के पास लौटे तो उन्होंने पिता रामबिलास पासवान की सलाह पर जमुई से वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उतरे और सांसद बने। फिर 2019 के आम चुनाव में भी वह जमुई से ही फिर सांसद निर्वाचित हुए। उस वर्ष लोजपा ने बिहार से छह सीटों पर जीत दर्ज की थी लेकिन साल 2020 में पूर्व केंद्रीय मंत्री रामबिलास पासवान के निधन के बाद सियासी विरासत को लेकर चिराग और चाचा पशुपति पारस में ऐसी ठनी कि लोजपा दो फाड़ हो गई और चिराग ताकते रह गए। हालात कुछ ऐसे बने कि एनडीए की अगुवाई कर रहे भाजपा के धुरंधर नेताओं ने भी चिराग से सुरक्षित दूरी बनाई तो मौके की नजाकत को भांपते हुए चिराग ने खुद ही एनडीए से नाता तोड़ लिया।
2020 का बिहार विधानसभा चुनाव चिराग के सियासी उभार का बना टर्निंग प्वाइंट
एनडीए से नाता टूटते ही चिराग पासवान के सामने बिहार में अपने पिता के पारंपरिक वोटरों और अपनी लोजपा रामबिलास का प्रभाव दिखाने की चुनौती थी। इसके लिए वह कमर कसकर मैदान में उतरे। वर्ष 2020 में ही बिहार में विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने सत्ताधारी जदयू के प्रभाव वाले सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2015 की तुलना में 2020 में जदयू को 27 विधानसभा सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा और वजह बने चिराग पासवान और इनकी पार्टी लोजपा रामबिलास। फिर वर्ष 2021 में संसद में लोजपा के छह सांसदों में पांच को लोजपा सदस्य रूप में स्वीकृति दी गई और पशुपति को ही लोजपा दल नेता के रूप में मान्यता मिली तो चिराग अकेले पड़े लेकिन साल भर पहले विधानसभा चुनाव से मिले सियासी घूंटी ने उन्हें डिगने नहीं दिया। यह चिराग के लिए टर्निंग प्वाइंट रहा।
‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के नारे छाए चिराग को भाजपा ने दी तवज्जो
चिराग डिगे नहीं और व्यवहार में कभी बेवजह तल्खी नहीं दिखाते हुए एनडीए विशेषकर भाजपा के दिग्गज नेताओं का समय-समय पर उचित आदर किया जाता रहा। इस सबके साथ ही वह अपने सियासी लक्ष्य में निरंतरता का इस्तेमाल करते हुए जुटे रहे। वर्ष 2021 में ही आशीर्वाद यात्रा निकाली। इसमें उन्हें अपने जनाधार में हो रही बढ़ोत्तरी के फीडबैक में टॉनिक मिला। इस टॉनिक के बूते चिराग ने खुद को बिहारी सियासत में नए यूथ के मिजाज को खुद से जोड़ने के लिए नारा दिया – ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने बी कुछ ऐसे ही विचारों के साथ जनसुराज यात्रा निकाली लेकिन सियासी पिच पर सक्रियता से इस मुद्दे पर लगातार कार्यरत चिराग को सोशल मीडिया से लेकर अन्य क्षेत्र में लगातार समर्थन मिला। यह नजारा भाजपा के रणनीतिकारों से भी नहीं छुपा रहा और वर्ष 2024 के लिए बिहार में एनडीए की गोटी तय करने से पहले चिराग पासवान को अपने पाले में लिया तो माकूल मौका देख चिराग ने भी देर नहीं की। सीट बंटवारे में एनडीए के घटक दल के तौर पर लोजपा रामबिलास को बिहार में जमुई समेत 5 सीटें मिलीं तो वह खुद अपने पिता की पारंपरिक सीट रही हाजीपुर से मैदान में उतरे। पांच की पांचों सीट पर दर्ज करते ही बिहार की सियासत में चिराग पासवान की चर्चा नए पॉलिटिकल यूथ आईकॉन के रूप में होने लगी और केंद्रीय कैबिनेट पर वह पीएम के चहेते युवा चेहरे के रूप में शामिल किए गए।
भतीजे चिराग के बढ़े सियासी ग्राफ से एनडीए में किनारे लगे पशुपति पारस
अपने सगे भतीजे और दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को हाजीपुर सीट पर चुनाव में उतरने नहीं देने की जिद ठाने रहने के कारण पशुपति कुमार पारस ने केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। वह समय पर समझ नहीं सके कि भाजपा ने एक समय चिराग पासवान की जगह पशुपति कुमार पारस को तवज्जो इस कारण दी थी कि नीतीश कुमार बुरा न मान जाएं। मोदी सरकार 2.0 में मंत्री बनने पर पारस को लगता रहा कि भाजपा के लिए वह चिराग से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इस भ्रम ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। वह हाजीपुर सीट पर उतरने के लिए जिद पर रहे और भाजपा ने इस सीट के लिए चिराग पासवान को कन्फर्म कर दिया। पारस तब भी यह नहीं समझ सके। जिद पर कायम रहने के कारण राजग के सीट बंटवारे में किनारे होने पर पारस ने आननफानन में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। वह बिहार आकर महागठबंधन के ऑफर का इंतजार करते रहे, लेकिन भाव नहीं मिला। इसके बाद पारस ने वापस राजग के प्रति आस्था जताई। कई प्रेस कांफ्रेंस किए। राजग की चुनावी जनसभाओं में भी रहे लेकिन भतीजे के 100 फीसदी सियासी स्ट्राइक रेट के सामने एनडीए में वह अनकहे ही किनारे लग गए।