डिजीटल डेस्क : Breaking – ‘सुप्रीम’ फैसला – कलकत्ता हाईकोर्ट के लड़कियों से यौन इच्छा पर काबू पाने की सलाह रद्द, फैसले पर लगी रोक। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के वर्ष 2023 में दिए उस विवादित फैसले पर रोक लगा दी है जिसमें यौन हिंसा से जुड़े मामले में एक आरोपी को बरी कर दिया गया था और किशोरियों को यौन इच्छा नियंत्रित करने वाली आपत्तिजनक सलाह भी दी गई थी। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने जजों के लिए किशोरों -किशोरियों से जुड़े मामलों में फैसले लिखने के तौर-तरीकों के बारे में भी दिशा-निर्देश जारी कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दोषसिद्धि बहाल रखा लेकिन फैसला विशेषज्ञ समिति पर छोड़ा
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘जूवेनाइल जस्टिस बोर्ड को हमने कहा है कि फैसला कैसे लिखना है. इसके लिए हमने जेजे एक्ट की धारा 19 (6) को लागू करने के लिए सभी राज्यों को दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं। हमने तीन विशेषज्ञों की एक विशेषज्ञ समिति भी बनाई है’। कोर्ट ने आगे कहा कि ‘हमने धारा 376 के तहत इस मामले में दोष सिद्धि बहाल कर दी है। विशेषज्ञों की समिति सजा पर फैसला करेगी। हम कोलकाता हाईकोर्ट के इस फैसले को रद्द कर रहे हैं। साथ ही हमने राज्यों को निर्देश दिया है कि जेजे एक्ट की धारा 46 के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 19 (6) का पालन करना होगा’।
हाईकोर्ट के खिलाफ बंगाल सरकार पहुंची थी सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइंया की पीठ ने यह फैसला सुनाया है। पिछले साल विवाद बढ़ने पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया था और तत्काल सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक भी लगा दी थी। साथ ही सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश की आलोचना भी की थी और हाईकोर्ट की टिप्पणी को आपत्तिजनक और अवांछित भी करार दिया था। बता दें कि कलकत्ता हाई कोर्ट के पिछले साल 18 अक्टूबर 2023 को दिए फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इससे पहले सुप्रीम अदालत ने पिछले साल 8 दिसंबर को हाईकोर्ट के फैसले की कड़ी आलोचना की थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की टिप्पणी को बिल्कुल आपत्तिजनक और पूरी तरह से अवांछित करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले के दौरान की गई उन कुछ टिप्पणियों का स्वत: संज्ञान लिया था और उस पर रिट याचिका के रूप में सुनवाई शुरू की थी। तब सर्वोच्च अदालत ने यह कहा था कि फैसला लिखते वक्त जजों से उपदेश की उम्मीद नहीं की जाती है।