रांची: आज भाद्रपद एकादशी के शुभ अवसर पर रांची सहित पूरे झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और अन्य आदिवासी बहुल क्षेत्रों में हर्षोल्लास के साथ कर्मा पर्व मनाया जा रहा है। रांची के हरमू शशावली अखड़ा विशेष रूप से सज-धज कर तैयार हो चुका है। शाम में गांव के पाहन की अगुवाई में पूजा-अर्चना की जाएगी। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य प्रकृति का संरक्षण और भाई-बहन के अटूट प्रेम का संदेश देना है।
हरमू देशावू कुटिया में इस पर्व की विशेष तैयारियों को दर्शाने की कोशिश की गई है। इस बार की तैयारियां एक महीने पहले से ही शुरू हो गई थीं। कर्म पर्व के नौ दिन पहले जावा जगाने और उठाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिसमें गांव के युवक और युवतियां मिलकर भाग लेते हैं।
आज, भाद्रपद एकादशी के दिन, गांव के युवक दोपहर 12 बजे कर्म डाल को काटने के लिए निकलते हैं और शाम तक उसे वापस लाते हैं। गांव की युवतियां कर्म डाल का परछा करती हैं, और पूरा गांव इसे अखड़ा तक लाने में रंग-बिरंगे परिधान पहनकर जश्न मनाता है। अखड़ा में कर्म डाल की स्थापना की जाती है, और पाहन के द्वारा विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है।
इस पर्व में कर्म और धर्म की कहानी सुनाई जाती है, जो भाई-बहन के अटूट प्रेम और उनके रिश्ते की विशेषता को दर्शाती है। बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र के लिए उपवास करती हैं, और भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। पूजा-अर्चना के बाद अखड़े में ढोल-नगाड़ों की थाप पर लोग झूमते नजर आएंगे और अंत में कर्म डाल का विसर्जन किया जाएगा।
रांची विश्वविद्यालय में इस बार प्रकृति पर्व का आयोजन धूमधाम से किया जा रहा है, विश्वविद्यालय के परिसर में एक पारंपरिक अखरा सजाया गया है, जहाँ पारंपरिक विभूषा में सजे लोग झूम नृत्य करके आगंतुकों का स्वागत कर रहे हैं। कार्यक्रम की खास बात यह है कि इस बार विश्वविद्यालय के कुलपति मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं।
विभाग के प्रमुख ने बताया कि यह पर्व प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य से मनाया जा रहा है, जिसमें विद्यार्थियों और शिक्षकों का उत्साह देखने लायक है। पारंपरिक गीत और नृत्य के माध्यम से आगंतुकों को आदिवासी संस्कृति का परिचय कराया जा रहा है।
कार्यक्रम की शुरुआत में आगंतुकों को विभागीय परिसर का भ्रमण कराया गया, जहां उन्होंने विश्वविद्यालय की शैक्षिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों को नज़दीक से देखा और सराहा। इसके बाद सभी ने अपने निर्धारित स्थान पर कार्यक्रम का आनंद लिया।
इस मौके पर कुलपति डॉ. उमेश नंद तिवारी ने कहा, “प्रकृति पर्व हमारे समाज की संस्कृति और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है। इस तरह के आयोजनों से छात्रों में सांस्कृतिक जागरूकता का विकास होता है और वे अपने परंपराओं से जुड़े रहते हैं।”