रांचीः राज्य सरकार द्वारा झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (स्नातक स्तर संचालन संशोधन नियमावली 2021) में राज्य के संस्थानों से मैट्रिक और इंटर को अनिवार्य किया जाने और हिंदी और अंग्रेजी भाषा को हटा दिए जाने को चुनौती देते हुए झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिकाकर्ता रमेश हांसदा और कुशल कुमार की ओर वकील अपराजिता भारद्वाज ने याचिका दायर की है.
बता दें संशोधन नियमावली 2021 के प्रावधानों के तहत अभ्यर्थियों के लिए राज्य के संस्थानों से मैट्रिक और इंटर पास किया जाना किए अनिवार्य कर दिया गया है, साथ ही अंग्रेजी और हिंदी को हटा दिया गया है, जबकि बांग्ला, उड़िया और उर्दू सहित 12 भाषाओं को पूर्व की भांति रखा गया है.
याचिका में राज्य में अवस्थित मान्यता प्राप्त संस्थानों से दसवीं और बारहवीं को अनिवार्य किया जाने को संविधान की मूल भावना और धारा 14 के विरुद्ध बतलाया गया है, याचिका कर्ता का कहना है कि वैसे अभ्यर्थी जो राज्य के निवासी हैं, परंतु अपनी प्रारंभिक पढ़ाई राज्य से बाहर किया है को परीक्षा के लिए रोका जाना न्यायोचित नहीं है.
याचिका में कहा गया है कि उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखना सरकार की राजनीतिक मंशा को दर्शाता है और यह सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने के लिए किया गया है. राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम हिंदी है और अंग्रेजी द्वितीय भाषा है. हिंदी और अंग्रेजी को शामिल न कर उर्दू को शामिल कर राज्य सरकार अपनी राजनीतिक मंशा पूरा करना चाहती है. सरकार राज्य के लोगों को बांटने का काम कर रही है. उर्दू की पढ़ाई सिर्फ मदरसों में होती है और एक खास वर्ग के लोग इसकी पढ़ाई करते है. स्पष्ट है कि राज्य सरकार एक खास वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरी में लाभ देना चाहती है. इसलिए नई नियमावली के प्रावधानों को खारिज किया जाए.
हिंदी राष्ट्रभाषा है, संविधान के प्रावधानों तथा केंद्र सरकार के विभिन्न निर्देशों के अनुरूप हिंदी भाषा के उपयोग के लिए प्रचार-प्रसार को किया जाता है, संपूर्ण देश में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. झारखंड में सरकारी कार्यालयों में हिंदी में काम किया जाता है, हिंदी भाषा को इस सूची से हटाना सराकार का एक राजनीतिक निर्णय है.