रांची: जब से नए राजा ने गद्दी संभाली है तब से झारखंड की राजनीति में फर्स्ट डिवीजन को कोई पूछ नहीं रहा लेकिन सेकंड डिवीजन की लड़ाई अपने चरम पर धीरे-धीरे पहुंचने लगी।
इसके तीन किरदार हैं दो पारिवारिक किरदार तो तीसरा किरदार सिपाही जो राजा की अनुपस्थिति में उसकी गाद्दी को 5 महीने तक संभाले रहा। सवाल यह है कि राजा के दिमाग में जो चल रहा है, उसे राजा कर पाएगा या राजनीतिक रणनीति और परिवार के मोह में फसता चला जाएगा यह देखना दिलचस्प होगा।
राजा का वह सिपाही है, जो इसका सेनापति भी है और अपने क्षेत्र का ताकतवर चेहरा भी है उसे पारिवारिक मोह से ऊपर रखना राजा की विवशता है। लेकिन परिवार के दो किरदार जो सेकंड डिवीजन आना चाहते हैं उनकी नाराजगी भी राजा मोल नहीं ले सकता।
दोनों पारिवारिक किरदारों में एक तो रानी का है जो राजा के कहने पर चल सकती है लेकिन जो दूसरा किरदार है ना वह राजनीतिक महत्वाकांक्षा के काफी नजदीक है उसकी सीमाएं अनंत है उसे बांधना राजा के लिए आसान नहीं है।
राजा किसी तरह का विवाद आने वाले चार महीना में नहीं चाहता पर परिवार के दूसरे किरदार जो सेकंड डिवीजन के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं उसका क्या होगा उसको कैसे संभालेगा यह आने वाला समय ही बताएगा।
यह राजनीति का एक पहलू है जो अभी झारखंड में दिख रहा है जहां फर्स्ट डिवीजन की इच्छा में कोई नहीं दौड़ लगा रहा बल्कि सेकंड डिवीजन के लिए कई लोग अभी से दौड़ लगा रहे हैं।
राजा किसी भी कीमत पर आने वाले चुनाव में हार नहीं मानना चाहता लेकिन किसके लिए पारिवारिक एकजुटता के साथ-साथ पार्टी की एकता प्रदर्शित करने के अलावा इसे बनाए रखना जरूरी है। तभी विरोधी पक्ष जो अभी ताकतवर दिख रहा है उसे सत्ता पाने से राजा रोक पाएगा।
राजा इससे अच्छी तरह से समझ रहा है और इस रणनीति पर काम कर रहा है ऐसा लगता है कि राजा पारिवारिक मोह में ना पडते हुए अपने सिपाही को नंबर दो का पोजीशन दे जिसने पूरी ईमानदारी से उसकी गाद्दी की रक्षा 5 महीने तक की।