Sunday, July 27, 2025

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नक्सली हमले में पिता को खोया, ट्यूशन पढ़ा-पढ़कर रच दिया इतिहास: खूंटी के अभय कुजूर JPSC में सेकेंड टॉपर बने

रांची/खूंटी: कभी जिसने पिता को देशसेवा में नक्सली के हमले में खो दिया, वही बेटा आज झारखंड प्रशासनिक सेवा का बड़ा अधिकारी बना है। खूंटी जिले के एक छोटे से गांव ठेसाय, पड़ता (ब्लॉक) निवासी अभय कुजूर ने JPSC की सिविल सेवा परीक्षा (11वीं से 13वीं संयुक्त) में द्वितीय रैंक हासिल कर पूरे राज्य को गौरवान्वित किया है।

अभय के पिता भारतीय सेना से रिटायर होकर झारखंड पुलिस में थे और वर्ष 2009 में नक्सली हमले में शहीद हो गए थे। इसके बाद अभय की जिम्मेदारी और संघर्ष बढ़ गया। ट्यूशन पढ़ाकर खुद की पढ़ाई का खर्च निकाला। आर्थिक और मानसिक चुनौतियों से जूझते हुए भी उसने हार नहीं मानी।

दूसरे प्रयास में सफलता, पहले यूपीएससी पर था फोकस
अभय ने बताया कि पहले प्रयास में उनका फोकस यूपीएससी पर था, इसलिए JPSC की प्रारंभिक परीक्षा भी क्लियर नहीं हो सकी। लेकिन दूसरे प्रयास में उन्होंने पूरी लगन से तैयारी की। उन्होंने कहा, “इस बार मैंने खुद से तैयारी की, उत्तर लेखन का अभ्यास किया, मॉक इंटरव्यू दिए और हर दिन प्रार्थना की कि मेहनत रंग लाए।”

मां का संबल और ग्रामीण चुनौतियों की झलक
अभय की मां एक गृहिणी हैं। परिवार पेंशन पर निर्भर था। अभय बताते हैं कि मां ने हमेशा हौसला दिया कि पूरी लगन से पढ़ाई करें और फुलटाइम समय दें। अभय का गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है — 60-65 किलोमीटर दूर होने के बावजूद अब तक पक्की सड़क नहीं बनी, बिजली की आपूर्ति भी सुस्त है।

इंटरव्यू के अनुभव साझा करते हुए बोले:
“मेरा इंटरव्यू अंतिम दिन अंतिम बैच में था। मुझे फैक्चुअल सवालों के उत्तर नहीं आने पर भी मैंने ईमानदारी से जवाब दिया कि नहीं पता। आत्मविश्वास और शांति से जवाब देना जरूरी होता है। मेरी तैयारी में गाइडेंस का भी अहम योगदान रहा।”

सवाल: पुलिस सेवा क्यों नहीं?
“मैंने प्रशासनिक सेवा इसलिए चुनी क्योंकि मेरा झुकाव शुरू से ही प्रशासन की ओर था। मुझे लगा कि मैं समाज को प्रभावी तरीके से सेवा दे सकूंगा।”

झारखंड के युवाओं के लिए संदेश:
“अगर आप आर्थिक रूप से कमजोर हैं, तब भी हौसला न खोएं। लगातार मेहनत करें, परिणाम देर से मिलेगा लेकिन मिलेगा ज़रूर। तैयारी ही आपका सबसे बड़ा हथियार है।”

एक प्रेरणादायक मिसाल
अभय कुजूर आज उन तमाम युवाओं के लिए प्रेरणा हैं, जो सीमित संसाधनों के बावजूद बड़ा सपना देखते हैं। उन्होंने साबित किया है कि जज़्बा और मेहनत के आगे कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।

 

 

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