रांची: झारखंड में लंबे समय से प्रतीक्षित सहायक आचार्य नियुक्ति परीक्षा का परिणाम जारी होते ही विवादों में घिर गया है। परीक्षा में शामिल हुए कई अभ्यर्थियों ने न सिर्फ पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि परिणाम प्रक्रिया को लेकर न्यायिक हस्तक्षेप की भी मांग की है।
दरअसल, JSSC द्वारा हाल ही में विज्ञान-गणित विषय के लिए मध्य विद्यालय के सहायक आचार्यों की नियुक्ति हेतु 58 पदों के विरुद्ध परीक्षा आयोजित की गई थी। इसके लिए कुल 2734 अभ्यर्थियों को प्रमाण पत्र सत्यापन के लिए बुलाया गया, परंतु केवल 1661 अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया गया। इनमें 1390 गैर पारा शिक्षक और 271 पारा शिक्षक शामिल हैं।
मुख्य विवाद का कारण बना ‘नॉर्मलाइजेशन’
JSSC द्वारा घोषित परिणाम में प्राप्तांक (Marks) सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। इसके बजाय केवल नॉर्मलाइजेशन अंकों के आधार पर मेरिट सूची तैयार की गई है। अभ्यर्थियों का आरोप है कि भर्ती नियमावली में नॉर्मलाइजेशन का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था, फिर भी इसे परिणाम का आधार बनाया गया।
यहां तक कि कई उम्मीदवारों का दावा है कि उन्होंने न्यूनतम निर्धारित अंकों से अधिक अंक प्राप्त किए हैं, फिर भी वे मेरिट लिस्ट में शामिल नहीं हैं। यह स्थिति न केवल पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है, बल्कि आयोग की प्रक्रिया को लेकर असंतोष भी पैदा कर रही है।
रिक्तियों और चयन संख्या में बड़ा अंतर
एक अन्य सवाल यह भी उठ रहा है कि जब 2734 अभ्यर्थियों को दस्तावेज सत्यापन के लिए बुलाया गया, तो केवल 1661 के ही परिणाम क्यों जारी किए गए? क्या बाकी अभ्यर्थी अयोग्य घोषित कर दिए गए? यदि हां, तो इसकी सूचना सार्वजनिक क्यों नहीं की गई? इसके अलावा यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि 58 रिक्तियों के सापेक्ष इतने अधिक चयन क्यों किए गए? क्या यह वेटिंग लिस्ट है या आगे पदस्थापन की कोई अलग योजना है?
नियुक्ति की प्रक्रिया पर उठे सवाल
हालांकि शिक्षा विभाग ने पदस्थापन की प्रक्रिया 20 अगस्त तक पूरी करने की योजना बनाई है और इसके लिए सभी जिलों को निर्देश भी भेजे जा चुके हैं। फिर भी असंतुष्ट अभ्यर्थी प्रक्रिया पर रोक की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक रिजल्ट की पारदर्शिता सुनिश्चित नहीं होती, तब तक नियुक्ति करना अन्यायपूर्ण होगा।
भविष्य की राह
झारखंड सहायक आचार्य संघ के प्रदेश अध्यक्ष परिमिल कुमार ने भी इस मुद्दे पर सवाल उठाए हैं और मांग की है कि आयोग स्पष्ट रूप से बताए कि किस आधार पर उम्मीदवारों को बाहर किया गया। यह नियुक्ति प्रक्रिया लगभग 9 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद हो रही है, ऐसे में पारदर्शिता और निष्पक्षता से किसी भी प्रकार का समझौता युवा शिक्षकों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा।
अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या JSSC इस विवाद को सुलझाने के लिए कोई स्पष्टीकरण देता है या यह मामला कोर्ट के दरवाजे तक पहुंचेगा।