रांची: झारखंड में निकाय चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है। राज्य में ट्रिपल टेस्ट प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब नगर निकाय चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है, लेकिन रांची नगर निगम के मेयर पद को लेकर एक बार फिर अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय के बीच टकराव की स्थिति बनती दिख रही है।
फिलहाल रांची नगर निगम में मेयर का पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, लेकिन अनुसूचित जाति समुदाय की ओर से इसे अपने लिए आरक्षित करने की मांग की जा रही है। उनका कहना है कि जनसंख्या के अनुपात और आरक्षण रोटेशन के आधार पर यह पद बारी-बारी से SC, ST और महिलाओं के लिए आरक्षित होना चाहिए।
SC समुदाय के लोगों का तर्क है कि 2022 में जब झारखंड नगर पालिका अधिनियम में संशोधन कर रोस्टर प्रणाली के तहत रांची मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया था, तो बाद में सरकार ने आदिवासी समुदाय के दबाव में निर्णय वापस ले लिया। वे जानना चाहते हैं कि क्या संवैधानिक रूप से इस तरह किसी आरक्षण को रद्द किया जा सकता है, जबकि उनका भी राज्य की आबादी में 15% हिस्सा है।
दूसरी ओर, आदिवासी संगठनों का कहना है कि रांची फिफ्थ शेड्यूल एरिया में आता है और यहां ‘पेसा एक्ट’ के तहत विशेष प्रावधान लागू होते हैं, इसलिए यहां मेयर का पद सिर्फ ST के लिए ही आरक्षित रहना चाहिए। आदिवासी प्रतिनिधियों ने चेतावनी दी है कि अगर इस पद को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करने की कोशिश की गई तो आदिवासी समाज सड़कों पर उतरकर विरोध करेगा।
उन्होंने राज्य सरकार से यह भी मांग की कि रांची नगर निगम में मेयर का पद एकल पद के रूप में ST के लिए आरक्षित रखा जाए और बिना किसी देरी के चुनाव की घोषणा की जाए।
विवाद की पृष्ठभूमि यह है कि वर्ष 2022 में राज्य सरकार ने नगर निकायों के लिए नया आरक्षण रोस्टर जारी किया था। इस रोस्टर के अनुसार रांची का मेयर पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया था, लेकिन आदिवासी संगठनों के तीव्र विरोध के कारण सरकार को यह निर्णय वापस लेना पड़ा था।
अब एक बार फिर जैसे-जैसे चुनाव की आहट नजदीक आ रही है, मेयर पद को लेकर ST और SC समुदायों के बीच तनाव की स्थिति बन रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार संवैधानिक प्रावधानों के तहत किस दिशा में निर्णय लेती है।




































