Monday, August 4, 2025

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दिशोम गुरु शिबू सोरेन: एक चिड़िया की मौत से शुरू हुई उस आवाज़ का अंत, जिसने झारखंड को राज्य बनाया

रांची: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक दिशोम गुरु शिबू सोरेन का 81 वर्ष की आयु में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। उनके निधन से पूरे झारखंड में शोक की लहर है। वे सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक आंदोलन की जीवित मिसाल थे, जिन्होंने अपने जीवन के हर मोड़ पर आदिवासी अस्मिता, हक और सम्मान की लड़ाई लड़ी।

एक चिड़िया ने बदला जीवन का रास्ता

11 जनवरी 1944 को झारखंड के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन का जीवन एक अत्यंत संवेदनशील घटना से मोड़ लेता है। साल 1953 की दशहरे की सुबह, जब वे मात्र 9 वर्ष के थे, उनके पिता सोबरन मांझी ने गलती से एक पालतू चिड़िया (भेंगराज) की जान ले ली। इस घटना ने शिबू के कोमल मन को अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने उस चिड़िया का अंतिम संस्कार किया, बांस की खटिया बनाई और कफन का प्रबंध किया। यहीं से उन्होंने मांस-मछली त्याग दिया और जीवनभर के लिए शाकाहारी बन गए। यही क्षण उनके भीतर अहिंसा और संवेदना के बीज बो गया, जिसने आगे चलकर उन्हें ‘दिशोम गुरु’ बना दिया।

पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन
पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन

पिता की हत्या बनी संघर्ष की शुरुआत

1957 में, जब शिबू केवल 13 वर्ष के थे, उनके पिता सोबरन मांझी की हत्या कर दी गई। वे एक शिक्षक थे और महाजनी प्रथा का विरोध कर रहे थे। इस घटना ने शिबू को सामाजिक अन्याय के खिलाफ खड़ा कर दिया। पढ़ाई छोड़ उन्होंने हजारीबाग में फॉरवर्ड ब्लॉक नेता लाल केदार नाथ सिन्हा की छत्रछाया में राजनीतिक प्रशिक्षण लिया। यहीं से शुरू हुआ उनके जीवन का असली संघर्ष।

धनकटनी आंदोलन और दिशोम गुरु की उपाधि

1960 के दशक में शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के विरुद्ध ‘धनकटनी आंदोलन’ चलाया। उस समय महाजन आदिवासियों की फसल का बड़ा हिस्सा ले लेते थे। शिबू गांव-गांव जाकर आदिवासियों को जागरूक करने लगे। इस आंदोलन ने उन्हें आदिवासी समाज का नायक बना दिया। खासकर संथाल समुदाय ने उन्हें ‘दिशोम गुरु’ यानी ‘दसों दिशाओं का गुरु’ का खिताब दिया। यहीं से उनके सामाजिक प्रभाव और नेतृत्व की पहचान बनी।

जंगलों से आंदोलन, खेतों से क्रांति

महाजनी और ज़मींदारी शोषण के खिलाफ जब आंदोलन तेज हुआ, तो शिबू सोरेन को कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के कारण जंगलों में शरण लेनी पड़ी। पारसनाथ के जंगलों से उन्होंने आंदोलन का संचालन किया। महिलाएं हसिया लेकर ज़मींदारों के खेत से फसल काटतीं और पुरुष तीर-कमान से उनकी रक्षा करते। यह एक ग्रामीण क्रांति थी, जिसने झारखंड आंदोलन की जड़ें मजबूत कीं।

शिक्षा, नशामुक्ति और आत्मनिर्भरता की राह

शिबू सोरेन ने हमेशा आदिवासियों को तीन बातों के लिए जागरूक किया –

  1. शिक्षा जरूरी है

  2. शराब से दूरी बनाए रखें

  3. सूदखोरों से बचें

उन्होंने गांवों में रात्रि शिक्षा की व्यवस्था की और गांव आधारित आर्थिक मॉडल की वकालत की। उनके प्रयासों ने झारखंड के सामाजिक ढांचे को बदलने में अहम भूमिका निभाई।

झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन

संगठित रूप से आदिवासियों की आवाज़ बनने के लिए शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का गठन किया। इसके माध्यम से उन्होंने अलग झारखंड राज्य की मांग को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया। उनका कद इतना बड़ा हो गया कि लोग उन्हें ‘गुरु जी’ कहकर पुकारने लगे।

अंतिम यात्रा, लेकिन अमर विरासत

4 अगस्त 2025 को जब उन्होंने अंतिम सांस ली, तो झारखंड एक महान आंदोलनकारी, नेता और विचारक को खो बैठा। लेकिन शिबू सोरेन की संघर्षगाथा, उनका आदर्श और ‘दिशोम गुरु’ की छवि हमेशा झारखंड और भारत के सामाजिक-राजनीतिक इतिहास में अमिट रहेगी।


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