जानिए महापर्व छठ से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें और पौराणिक कथा

रांची : लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ नहाय-खाय के साथ आज से शुरू हो गया है.

पर्व की तैयारी भी अंतिम चरण में पहुंच गयी है. घाट की सफाई के साथ प्रसाद

बनाने के लिए गेहूं चुनने और सुखाने का काम भी शुरू हो गया है.

गली-मोहल्लों में छठी मइया के गीत गूंजने लगे हैं. माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो उठा है.

29 अक्टूबर को खरना है. 30 अक्टूबर को अस्ताचलगामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा,

उसके अगले दिन सुबह यानी 31 अक्टूबर को उदयगामी यानी

उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन होगा.

इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ शुरू हो गयी है.

छठ सूर्य उपासना और छठी माता की उपासना का पर्व है. हिन्दू आस्था का यह एक ऐसा पर्व है,

जिसमें मूर्ति पूजा शामिल नहीं है. इस पूजा में छठी मईया के लिए व्रत किया जाता है.

यह व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है.

छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा

ज्योतिषाचार्य के मुताबिक छठ पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है, जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है. एक कथा के अनुसार प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी. इस वजह से वे दुखी रहते थे. महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया.

इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुखी थे. तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. जब राजा ने उनसे प्रार्थना की, तब उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं. मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं.” इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की. ऐसी मान्यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया.

महापर्व छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है. यही एक मात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है. वे ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है. वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा जाता है. सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है.

सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है. छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम.

महापर्व छठ: खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टि से छठ पर्व का महत्व

वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी छठ पर्व का बड़ा महत्व है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है. इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती है. इन हानिकारक किरणों का सीधा असर लोगों की आंख, पेट व त्वचा पर पड़ता है. छठ पर्व पर सूर्य देव की उपासना व अर्घ्य देने से पराबैंगनी किरणें मनुष्य को हानि न पहुंचाएं, इस वजह से सूर्य पूजा का महत्व बढ़ जाता है.

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