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मुवक्किल की चार पीढ़ी और अधिवक्ता की तीन पीढ़ी लड़ती रही केस, 1914 में दर्ज हुआ था मामला
आरा : आरा में विवादित जमीन का फैसला 108 साल बाद आया है.
फैसला आने के बाद परिवार के लोगों में खुशी का माहौल है.
सभी ने कोर्ट का धन्यवाद किया है.
दरअसल 1914 में पहली बार नौ एकड़ जमीन को लेकर मामला दर्ज हुआ था.
यह जमीन कोइलवर-बबुरा रोड में है.
उस दौरान देश अंग्रेजों के गुलामी में जकड़ा हुआ था. साल 1947 में देश आजाद हुआ.
संविधान का भी निर्माण हो गया. लेकिन इस केस का फैसला नहीं आ सका.
लेकिन 108 वर्षों बाद आरा सिविल कोर्ट ने इस मुकदमे पर फैसला सुनाया है.
यह केस देश के लंबे केसों में से एक माना जा रहा है.
ऐसे शुरू हुआ विवाद
मिली पूरी जानकारी के मुताबिक 1911 में नथुनी खान के निधन के बाद
पत्नी जैतून खान, बहन बीबी बदलन एवं बेटी बीबी सलमा के बीच बंटवारे का विवाद हो गया था. जिसके बाद इस जमीन को लेकर कोर्ट में 1914 में वाद दायर कराया गया था. इसी दौरान जमीन के एक हिस्सेदार से कोईलवर के निवासी स्व. दरबारी सिंह ने तीन एकड़ जमीन खरीद ली थी. वहीं जानकारी के अनुसार जैतून खान की पत्नी से दूसरी पार्टी ने पूरी जमीन खरीद ली. इस पर दोनों खरीदारों में मुकदमा शुरू हो गया.

17 मार्च 1992 को अदालत ने जमीन मुक्त करने का दिया था आदेश
नौ एकड़ विवादित जमीन के मामले में तत्कालीन दंडाधिकारी ने धारा 145/146 के तहत 14 दिसंबर 1931 को पूरी नौ एकड़ विवादित जमीन को जब्त करने का आदेश दे दिया. तब स्व. दरबारी सिंह ने जमीन को मुक्त कराने के लिए कोर्ट में वाद दाखिल कराया. जिसके बाद 17 मार्च 1992 को अदालत ने पक्ष में जमीन मुक्त करने का आदेश दे दिया था. इसके खिलाफ दूसरे पक्ष के लोगों ने अपील दायर की थी.
कानूनी लड़ाई जीतकर अरविंद कुमार सिंह ने ये कहा
108 साल तक चली कानूनी लड़ाई को जीतकर खुश नजर आए अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि यह जमीन उनके परदादा स्व. दरबारी सिंह ने जमीन खरीदी थी और लगभग 40 साल केस उन्होंने लड़ा था. फिर उनके मर जाने के बाद उनके पुत्र यानी अरविंद सिंह के दादा स्व. राजनारायण सिंह इस केस को लेकर आगे बढ़े. अब अरविंद सिंह, अलखदेव नारायण सिंह और उनके पुत्र अतुल सिंह ने केस को देखा है. यह मुवक्किल की चौथी पीढ़ी है. वहीं इस केस को लड़ रहे अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण सिंह के दादा स्व. शिवव्रत नारायण सिंह स्व. दरबारी सिंह के वकील थे. उसके बाद उनके बेटे अधिवक्ता स्व. बद्री नारायण सिंह ने इस केस को लड़ा था. फैसले के समय स्व. ब्रदी नारायण के बेटे सत्येंद्र नारायण केस को लड़ रहे थे.
1914 में शुरू हुई लड़ाई का फैसला 2022 में आया
आरा के व्यवहार न्यायालय में एडीजे-7 श्वेता सिंह के फैसले के बाद अरविंद सिंह का परिवार काफी खुश है. कोईलवर से बबुरा जाने वाली सड़क पर तीन एकड़ जमीन अभी भी परती पड़ी हुई है. अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण सिंह ने बताया कि कुल नौ एकड़ जमीन की कानूनी लड़ाई 108 साल पहले 1914 में शुरू हुई थी. जिसका फैसला अब 2022 में आया है.
अधिवक्ता गणेश पांडेय और सत्येंद्र नारायण सिंह ने बताया कि जज श्वेता सिंह ने इतने पुराने मामले को सुलझाने के लिए कड़ी मेहनत की और कोरोना में भी केस की लगातार सुनवाई की. इस मामले में कई परेशानियां हुई. क्योंकि यह केस आजादी के पहले की थी, कई कागज दीमक चाट गए थे और उन्हें किसी तरह जोड़ कर उनका अवलोकन किया गया है. मुस्लिम परिवार का अपना बंटवारा का केस, उनके वारिसों के द्वारा बिक्री की गई जमीन का केस और स्व. दरबारी सिंह का केस सब आपस में जुड़े हुए थे.
रिपोर्ट: शक्ति
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