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मूर्तिकारों ने कहा- सभी को हुआ नुकसान
छपरा : शहर के पूजा पंडालों में स्थापित माता रानी समेत देवी-देवताओं के मनमोहक मूर्तियों को देखने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. मगर इस उत्साह, उल्लास व बुराई पर अच्छाई के जीत के त्योहार के चकाचौंध के इतर एक तबका ऐसा भी है, जो अभी भी अपने साल भर के जीवन-यापन के लिए लगाए गए पूंजी तथा दुर्गापूजा में हुए आय को लेकर हिसाब-किताब करने में जुटा हुआ है.
पंडाल तक नहीं पहुंच पाई मूर्ति
हम बात कर रहें है अपने महीनों के परिश्रम व बड़ी लागत की बदौलत अनगढ़ मिट्टी को सुंदर व आर्कषक प्रतिमा का रूप देने वाले कुम्हार समुदाय के लोगों की. शहर के पश्चिमी छोर पर कुम्हार टोली में करीब दो दर्जन से ज्यादा परिवार मिट्टी से निर्मित प्रतिमाएं व खिलौने बनाकर अपना जीवन-यापन करते हैं, जिन्हें इस दिन का पूरे साल इंतजार रहता है. क्योंकि दशहरा में बनने वाली मिट्टी की प्रतिमाओं से हुए आय से ही उनके पूरे परिवार की दाल-रोटी चलती है. हालांकि इस बार बेहतर आमदनी मिलने के अति आत्मविश्वास ने कई कुम्हारों को कर्ज में डूबो दिया है. श्यामचक कुम्हार टोली की बात करें तो बड़ी संख्या में यहां के मूर्तिकारों द्वारा बनाए गए मां दुर्गा समेत विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमा ग्राहक नहीं मिलने के कारण पंडाल तक नहीं पहुंच पाई.
इस बार कम जगह पर की गयी प्रतिमाएं स्थापित
इस बार भले ही प्रशासन द्वारा दुर्गा पूजा पर प्रतिमा स्थापित कर पूजा करने की छूट दिया गया है, हालांकि इसके लिए भी प्रशासन से लिखित रूप में स्वीकृती लेना अनिवार्य है. पूजा व प्रतिमा स्थापना के लिए प्रशासन द्वारा इस बार पेंचिदा मानदंड भी तय कर दिया है. ऐसे में इस बार कम जगह पर प्रतिमाएं स्थापित की गयीं.
छूट मिलने से ज्यादा संख्या में बनायी गईं मूर्तियां
पिछले दो साल से कोरोना के कड़े प्रतिबंध के कारण आर्थिक संकट झेल रहे कुम्हार समुदाय के लोग इस बार दुर्गा पूजा में शर्तों के साथ ही मूर्ती स्थापना की अनुमति मिलने से काफी खुश थे. बेहतर आय की सोच लिए समुदाय के लोंगों का पूरा परिवार पिछले 3-4 माह से लगातार मुर्ती बनाने में जुटा हुआ था. इन्हें उम्मीद थी कि इस बार बड़ी संख्या में मिट्टी की मूर्तियों का डिमांड होगा. सभी ने अधिक मूर्तियां बनाने का प्रयास किया.
रिपोर्ट : रंजीत