बांस के बने सूप और दउरा की डिमांड बढ़ी

Koderma: लोक आस्था के महापर्व छठ को लेकर बांस के बने सूप और दउरा की डिमांड बढ़ गई है, लेकिन मेहनत और लागत के अनुसार सुप और दउरा तैयार करने वाले कारीगरों को उचित आमदनी नहीं हो पाती है।

कोडरमा के झुमरी तिलैया के असनाबाद में तूरी समुदाय के 30 ऐसे परिवार हैं, जो सालों भर बांस के बने सूप और दउरा तैयार करते हैं। छठ के मद्देनजर इसकी डिमांड भी बढ़ गई है, ऐसे में परिवार के सभी लोग सुप और दउरा बनाने में जुटे हैं। पहले कई चीज आसान हुआ करती थी।

जंगल से इन परिवारों को आसानी से बांस मिल जाया करता था, लेकिन अब बांस भी इन्हें खरीद कर लाना पड़ता है। इसके अलावा पीतल और कांसा के बने सुप भी इसके विकल्प के रूप में बाजारों में आ गए हैं। जिसके कारण थोड़ी डिमांड कम हुई है।

हालांकि बांस के बने सूप और दउरा की परमाणिकता का छठ पर्व में खासा महत्व है। कीमत कम होने के कारण गरीब परिवारों के लिए भी यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है।

इन परिवारों का मानना है कि अगर इन्हें बेहतर आमदनी हो तो उनके जीवन स्तर में भी सुधार हो सकता है। हालांकि लागत और मेहनत के बावजूद कम आमदनी होने के बाद भी ये लोग अपने पुश्तैनी व्यावसाय को जीवित रखे हुए हैं और छठ के मौके पर बाजार की डिमांड को पूरी करने में जुटे हैं।

वार्ड पार्षद घनश्याम तुरी ने बताया कि पीतल और कांसा के सुप होने के बावजूद भी ज्यादातर लोग बांस के बने सुप और दउरा में ही छठ करना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि इसकी शुद्धता ज्यादा होती है, इसके अलावा इसका प्राकृतिक रूप से जुड़ाव भी होता है।

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