चतरा : अगर मन से कोई काम करें तो सारी बाधाएं अपने आप दूर हो जाती है। चाहे गरीबी हो या दिव्यांगता। ऐसी ही कहानी उपेंद्र कुमार यादव की है। बेबसी और लाचारी इनकी जिंदगी में ईश्वर ने दी है, इसके बावजूद हौसलों की उड़ान कभी कम नहीं हुई। गरीबी का दंश झेल रहे उपेंद्र कुमार यादव ने 12वीं की पढ़ाई पूरी कर आगे पढ़ना चाहता है। वैश्विक कोरोना महामारी ने गांवों में स्कूली शिक्षा को पूरी तरह से चौपट कर दिया है। लेकिन दिव्यांग उपेन्द्र कुमार यादव आज भी गांव में शिक्षा का अलख जगा रहे हैं। दिव्यांग उपेंद्र मन में कुछ करने की जज्बा और बुलंद इरादे लेकर वह अपने गांव के बच्चों को स्कूली शिक्षा दे रहे हैं। उनकी इस अदम्य साहस की कहानी किसी से कम नहीं है।
चतरा जिला की कान्हाचटी प्रखंड के सुदूरवर्ती गांव में से एक है लारालुटूदाग। नक्सलियों का गढ़ माने जाने वाले इस गांव में चलने के लिए कच्ची सड़क भी नहीं है। गांव के लोगों को पगडंडियों के सहारे चलना पड़ता है। लेकिन लारा लुटु दाग गांव के उपेंद्र कुमार यादव अपनी मां और चार भाई-बहनों के साथ मिट्टी के घर में रहते हैं। इनके पिता गुजरात में महज ₹8000 की नौकरी करते हैं।
लॉकडाउन के बाद गांव में स्कूली बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह चौपट हो गई। इस इस गांव में किसी के पास स्मार्टफोन नहीं है, ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई की बात तो पूरी तरह बेमानी है। लेकिन उपेंद्र कुमार यादव ने साहसिक काम किया और उन्होंने गांव के बच्चों को स्कूली शिक्षा देना शुरू किया है। उपेंद्र कुमार यादव ने बताया कि संसाधनों की कमी के बावजूद इन छात्रों के बीच पठन-पाठन की सुविधा अपने बल पर किया जा रहा है। उसने बताया कि वह खुद भी पढ़ना चाहता है और पूरे समाज को शिक्षित बनाना चाहता है।
उन्होंने राज्य सरकार से अपने चलने के लिए एक तीन पहिया स्कूटी की भी मांग की है। उपेंद्र यादव के साहस से गांव वाले तो काफी प्रभावित हैं और वे मानते भी हैं सरकार को उन्हें ट्राय स्कूटी जल्द से जल्द उपलब्ध करा देना चाहिए। जबकि कान्हाचट्टी प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी हुलास महतो का कहना है कि उपेंद्र कुमार यादव के अदम्य साहस की चर्चा सुनी है। उन्होंने कहा कि यदि वे आवेदन देंगे जो कल्याण विभाग से उन्हें साइकिल मिल सकता है।