रांची: देश में मानसून सीजन का आधा हिस्सा बीत चुका है और अब तक वर्षा का वितरण बेहद संतुलित और सकारात्मक रहा है। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2025 में जून और जुलाई दोनों ही महीनों में औसत से अधिक बारिश हुई है। जून में सामान्य से 9% और जुलाई में 5% अधिक बारिश दर्ज की गई। यह ट्रेंड बीते 12 वर्षों में पहली बार देखा गया है। 2013 के बाद अब जाकर ऐसा मौका आया है जब दोनों शुरुआती मानसूनी महीनों में लगातार सामान्य से ज्यादा वर्षा हुई हो।
निजी मौसम एजेंसी स्काईमेट के प्रेसिडेंट जीपी शर्मा ने इसे एक असाधारण स्थिति बताया है। उनके अनुसार, आमतौर पर जून या जुलाई में से कोई एक महीना कमजोर रहता है, लेकिन इस वर्ष दोनों में बारिश का वितरण बेहतर रहा। उन्होंने बताया कि जब एक महीने में अधिक वर्षा होती है तो दूसरे में उसकी भरपाई नहीं हो पाती, लेकिन इस साल ऐसा नहीं हुआ।
वर्ष 2025 में जुलाई का महीना लो-प्रेशर एरिया के मामले में सबसे सक्रिय रहा। पूरे महीने में 6 लो-प्रेशर एरिया बने, जिनमें से 4 डिप्रेशन में बदल गए। इस वजह से जुलाई के 31 में से 28 दिन वर्षा होती रही। लो-प्रेशर एरिया वह मौसमी तंत्र होता है जहां वायुमंडलीय दबाव कम हो जाता है, जिससे बादल बनते हैं और भारी बारिश होती है।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जैसे क्षेत्रों में भारी बारिश के कारण बाढ़ के हालात बन गए हैं और शहर की गलियों में नावें चल रही हैं। वहीं मौसम विभाग ने अगले एक सप्ताह में देश के कई हिस्सों — जैसे मेघालय, उत्तर प्रदेश, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, केरल और तमिलनाडु — में भारी से अत्यधिक भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। इसके अलावा असम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के लिए फ्लैश फ्लड की चेतावनी भी जारी की गई है।
अगस्त में मानसून ब्रेक की संभावना:
मौसम पूर्वानुमानों के अनुसार, अगस्त के पहले पखवाड़े में 8 से 10 दिनों का ‘मानसून ब्रेक’ संभव है। इस दौरान मानसूनी हवाएं हिमालय की तलहटी में सिमट जाएंगी, जिससे तराई क्षेत्रों को छोड़कर बाकी देश में सामान्य से कम बारिश होगी। इतिहास गवाह है कि अगस्त में अक्सर मानसून ब्रेक देखने को मिला है — वर्ष 2023 में 12 दिन, 2009 में 13 दिन, 2002 में 14 दिन और 1972 में रिकॉर्ड 17 दिनों का ब्रेक रहा था।