जनार्दन सिंह की रिपोर्ट
डिजिटल डेस्क : दिल्ली की सियासत में ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का बजा डंका। दिल्ली में एक दिन पहले सियासी फिजां एकदम से बदली हुई है। लगातार 10 सालों तक राज करने वाली AAP की दिल्ली से ऐसी विदाई होगी, यह AAP के रणनीतिकारों ने सपने में नहीं सोचा था और ना ही वैसा अंदाजा AAP की लुटिया डुबोने वाले कांग्रेस के दिग्गजों लेकिन अब भाजपाई एक बात डंके की चोट पर कह रहे हैं कि – ‘मोदी है तो मुमकिन है’।
दिल्ली की सत्ता में 27 सालों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्रीय सत्ता के तीसरे कार्यकाल में एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर आंका जा रहा है। दिल्ली में सत्ता विरोधी ऐसी लहर पैदा हुई जिसे AAP के रणनीतिकार भांप नहीं पाए और कुर्सी फिर से पाले में आने की बजाय छिटक गई।
वैसे भी सत्ता विरोधी लहर के कारण 2024 चुनावों के लिए सुपर ईयर था। मतदाताओं के असंतोष के कारण ब्रिटेन से अमेरिका तक कई देशों में सत्तारूढ़ दलों का पतन हुआ है। लगातार 10 साल में सत्ता पर काबिज AAP इसे समझ नहीं सकी।
AAP को यमुना की सफाई, यूरोपियन स्टैंडर्ड की सड़कें और 24 घंटे साफ पानी जैसे वादे पूरे न करना भारी पड़ा। मतदान के ऐन मौके पर AAP का जहरीली यमुना का दांव भी उल्टा पड़ गया।
‘मोदी है तो मुमकिन है’ का दिखा दम…
दिल्ली में संपन्न हुए चुनावों के आए नतीजों के विश्लेषण करने पर जितनी भी तस्वीरें उभरकर सामने आ रही हैं, उनमें एक बात तो कॉमन है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी का सिक्का खूब चला है। साथ ही मोदी है तो मुमकिन है-का जादू फिर चला। पीएम नरेंद्र मोदी का ताबड़तोड़ प्रचार जीत का प्रमुख कारण बना।
पीएम नरेंद्र मोदी का AAP को आपदा बताना, शीशमहल पर निशाना साधने का मतदाताओं पर असर पड़ा। AAP के कल्याणकारी कार्यक्रम जारी रखने का भरोसा दिया और महिलाओं व दलितों के लिए अलग घोषणाएं भी कीं।
खास बात यह कि दिल्ली के चुनावी नतीजों से साफ कर दिया है कि नतीजों ने साबित कर दिया-मुफ्त रेवड़ियां चुनाव जीतने के लिए जरूरी हो सकती हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं। महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली, तीनों चुनावों में राज्य सरकारों के कल्याणकारी कार्यक्रमों पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया।
इन मुफ्त रेवड़ियों ने महाराष्ट्र और झारखंड सरकारों को सत्ता वापसी मदद की, लेकिन दिल्ली में यह विफल रहा। इससे पहले, बीआरएस और वाईएसआरसीपी भी मुफ्त रेवड़ियों पर दांव लगाने के बावजूद हार गई थी।
![दिल्ली के चुनावी नतीजों के बाद रविवार को अमित शाह और जेपी नड्डा के बीच हुई अहम बैठक का दृश्य।](https://i0.wp.com/22scope.com/wp-content/uploads/2025/02/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A5%E0%A4%A8-%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%82.jpg?resize=500%2C334&ssl=1)
भाजपा का असली पॉवरबैंक कहे जाने संघ ने भी दिल्ली में खूब की मेहनत
इसी क्रम में दिल्ली के चुनावी नतीजों में भाजपा को हुए फायदे में भाजपा के असली पॉवरबैंक संघ यानी RSS की भूमिका को कत्तई नहीं नकारा जा सकता। RSS पर पिले पड़े कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को संघ की अहमियत अब समझ आ रही होगी। संघ और भाजपा में मतभेद की बातें भले ही सामने आएं लेकिन इनमें मनभेद की कोई गुंजायश कत्तई नहीं रहतीं।
यही बात कई बार संघ और भाजपा के विरोधियों को समझ नहीं आती और मुगालते में वे सियासी तौर अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मारते दिखते हैं। आम चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद संघ-भाजपा के बीच समन्वय की कमी की बातें सामने आईं। लेकिन संघ ने हरियाणा व महाराष्ट्र में भाजपा का पूरा साथ देकर साबित कर दिया कि संघ असली पावरबैंक है।
संघ कार्यकर्ताओं ने 5,000 से अधिक नुक्कड़ और ड्राइंग रूम बैठकें कीं। संघ पार्टी को अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अपने वादों को अनुकूलित करने वाले हाइपरलोकल अभियान लाने में मदद करता है। दिल्ली के चुनावी नतीजों में इसका असर साफ दिखा है।
![उपराज्यपाल को इस्तीफा सौंपती आतिशी](https://i0.wp.com/22scope.com/wp-content/uploads/2025/02/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AB%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%8C%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%80.jpg?resize=696%2C455&ssl=1)
लोकसभा चुनाव के बाद ग्राफ सुधारने में जुटी भाजपा ने खत्म किया दिल्ली का वनवास
बीते लोकसभा चुनाव में अकेले स्पष्ट बहुमत न आने से राजनीतिक गलियारों में माना जाने लगा था कि भाजपा के विजयरथ में बाधाएं आएंगी। AAP समेत विपक्षी दल इसे लेकर अति आत्मविश्वास में आ गए। वहीं, भाजपा ने जमीनी मेहनत से हरियाणा, महाराष्ट्र और अब दिल्ली में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।
पीएम मोदी की लोकप्रियता को कम आंकने वालों को इन नतीजों से झटका लगा है। राजधानी दिल्ली में भाजपा का 26 साल का वनवास समाप्त हो चुका है। प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा ने राजधानी में वापसी की है। बीते 10 साल से दिल्ली की सत्ता पर काबिज AAP (आम आदमी पार्टी) का किला ढह गया।
पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सरकार में नंबर दो रहे पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन समेत कई मंत्री और पार्टी के दिग्गज नेताओं ने अपनी सीट गंवाई। CM आतिशी हारते-हारते जीतीं हैं। आखिरी राउंड में बनी बढ़त से वह भाजपा के रमेश बिधूड़ी से मामूली अंतर से जीतीं।
ग्रेटर कैलाश से चुनाव लड़ रहे कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज भी हार गए हैं। इस चुनाव में बीते 10 साल से दिल्ली की सत्ता पर आसीन AAP को बड़ा झटका लगा है। 2020 के चुनाव में जहां AAP के 62 विधायक थे अब उनकी संख्या घटकर 22 रह गई।
वहीं आठ सीटों पर विपक्ष की भूमिका निभा रही भाजपा को दिल्ली की जनता का खूब आशीर्वाद मिला। भाजपा को इस चुनाव में 70 सीटों में से 48 सीटों पर जीत मिली हैं। दिल्ली में सरकार बनाने के लिए 36 सीटों की जरूरत होती है। ऐसे में भाजपा को बहुमत से अधिक 12 सीटें मिली हैं।