रांची: झारखंड की सबसे प्रतिष्ठित मानी जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा जेपीएससी अब एक ऐसा किस्सा बन चुकी है, जिसे सुनकर बच्चा-बच्चा यही पूछता है – “कहो, अबकी बार परीक्षा होगी कि कोर्ट में केस होगा?”
राज्य में बेरोजगारी की दर जब रिकॉर्ड तोड़ ऊंचाई पर पहुंच रही है, तब जेपीएससी का धीमी गति से रेंगना एक अलग ही प्रशासनिक स्लोमोशन फिल्म जैसा अनुभव देता है। जेपीएससी की कार्यप्रणाली को देखकर तो कछुआ भी आत्ममंथन में चला गया है – “हम तो रेस जीत गए थे, लेकिन जेपीएससी को तो मंजिल की परवाह ही नहीं है!”
11वीं सिविल सेवा परीक्षा का परिणाम 11 महीने बाद आया, और अभी तो इंटरव्यू और कट-ऑफ की महाकथा बाकी है। तैयारी कर रहे उम्मीदवारों की हालत उस किसान जैसी हो चुकी है जो बीज तो बो चुका है, लेकिन उसे नहीं पता कि बारिश कब होगी और फसल कब कटेगी।
अब कोई पूछे – “भाई, झारखंड बना 2000 में, आयोग बना 2002 में, और 2025 में सिर्फ 8 बार सिविल सेवा परीक्षा?”
उत्तर मिलेगा – “बाकी समय हम सुधार, संशोधन और विवाद निपटारा विभाग चला रहे थे।”
पहली परीक्षा 2003 में हुई थी, और तब से हर परीक्षा एक अलग स्कैंडल लेकर आई है – कोई ओएमआर गुम कर बैठा, कोई मेरिट लिस्ट दो बार छाप बैठा, और कोई साक्षात्कार में दो सौ से ज्यादा लोगों को अतिथि कलाकार की तरह बुला बैठा।
कभी आरक्षण नीति की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं, कभी उत्तर पुस्तिकाएं रद्दी में निकल जाती हैं। ऐसा लगता है जैसे जेपीएससी परीक्षा नहीं, बल्कि कोई ‘रियलिटी शो’ है – हर एपिसोड में नया ट्विस्ट, नई सीबीआई एंट्री, और अंत में सब ‘टू बी कंटिन्यूड…’।
राज्य के युवा जो जेपीएससी की तैयारी करते हैं, उन्हें दो चीजों की जरूरत होती है – एक मजबूत दिमाग और दूसरा मजबूत धैर्य। क्योंकि यहाँ परीक्षा से ज्यादा इंतजार की परीक्षा होती है।
ई तो कछुआ से भी धीरे दौड़ रहा है जेपीएससी, लड़का लोग कैसे देखेगा अच्छी जिंदगी का सपना?
सच में, यहां सपनों का पीछा करते-करते लोग उम्रदराज हो जाते हैं, और जेपीएससी अभी भी “अगली तारीख” की तलाश में बैठा होता है।
तो अगली बार जब कोई बच्चा पूछे – “मम्मी, मैं बड़ा होकर क्या बनूं?”
मम्मी बोले – “बेटा, कुछ भी बन जा, लेकिन जेपीएससी मत देना, वरना तुम भी इंतजार करते-करते इतिहास बन जाओगे।”