बिहार का कश्मीर ककोलत, जहां बुनियादी सुविधाओं का रोना रो रहे हैं पर्यटक
Nawada– सूबे बिहार के लिए प्रकृति का नैसर्गिंक उपहार है ककोलत जलप्रपात.
इसे बिहार का कश्मीर भी कहा जाता है.
कोरोना काल के दौरान संक्रमण के कारण लोगों की आवाजाही बंद थी.
कोरोना गुजरते ही एक बार फिर से पर्यटकों का तांता लगने लगा है.
सैलानी जलप्रपात का लुत्फ उठा रहे हैं.
गोविंदपुर की पहाड़ियों में स्थित है ककोलत
नवादा जिले के गोविंदपुर की पहाड़ियों में करीबन 150 फीट से जलधारा गिरती है.
ऐसे में स्नान करनेवाले लोगों को यह जलप्रपात खूब रोमांचित करता है.
जब नवादा का तापमान 45 डिग्री से भी पार कर जाता है, तब भी ककोलत के समीप शीतलता मौजूद रहती है.
सैलानियों का कहना है कि ककोलत का झरना अदभूत और रोमांचित करनेवाला है.
क्या बुजुर्ग जवान अपने को यहां आने से रोक नहीं पाते है.
प्रकृति का अजीब संयोग
इसे प्रकृति का अजीब संयोग ही कहा जा सकता है कि जहां नवादा में पाकिस्तान के जैकाबावाद जैसी गर्मी पड़ती है,
वहीं इसी जिले में स्थित ककोलत में इस गर्मी में भी शीतलता का एहसास होता है. यही शीतलता पर्यटकों को यहां खींच लाती है.
कोल जनजातियों का निवास स्थल था ककोलत
माना जाता है कि ककोलत को कोल जनजाति का निवास स्थल था, जो कालान्तर में विजातीय समूहों के दवाब में यहां से दूसरे स्थानों पर चले गये.
आस्था यह भी है कि महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान समय बिताया था.
मान्यता यह भी है कि यहां स्नान करने पर सर्पयोनि से मुक्ति मिल जाती है.
ककोलत के केयर टेकर यमुना पासवान बताते हैं कि इस बार गरमी की शुरुआत से ही यहां सैलानियों का तांता लगा हुआ है. यमुना पासवान बताते हैं कि यहां सिर्फ झरना ही नहीं है
बल्कि यहां की पहाड़ियों और जंगलों में जड़ी बूटियों का खजाना छुपा है,
यहां आयुर्वेद का रिसर्च सेंटर स्थापित कर जड़ी बूटियों पर काम किया जा सकता है.
32 साल बाद लाल सिंह चड्ढा से कश्मीर में रुपहले पर्दे की वापसी