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Monday, October 6, 2025

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मिथिलांचल में नवविवाहितों का कोजागरा पर्व आज, शरद पूर्णिमा के दिन देवी अन्नपूर्णा की पूजा के साथ ही पान-मखान बांटने का है रिवाज

मिथिलांचल में नवविवाहितों का कोजागरा पर्व आज, शरद पूर्णिमा के दिन देवी अन्नपूर्णा की पूजा के साथ ही पान-मखान बांटने का है रिवाज

कोजागरा (मैथिली में कोजगरा ) पर्व मिथिलांचल में नवविवाहित जोड़ों का एक पर्व है । यह मैथिल ब्राह्मणों और कायस्थ समुदायों में आश्विन शऱद पूर्णिमां के दिन मनाया जाता है ।
कोजागरा शब्द मुख्यतः नक्षत्र पति (नक्षत्रों के राजा) चंद्रमा से जुड़ा है । इसका अर्थ है कि पूर्णिमा को उसकी अमृतमयी किरणों में जागने के दिन के रूप में मनाया जाता है ।

कोजागर की रश्म

कोजागरा मिथिलांचल में ब्राह्मणों और कायस्थों के समुदायों में मैथिल विवाह की परंपरा से जुड़ा एक संस्कार अनुष्ठान है । इसमें नवविवाहित दुल्हनों के घर से दूल्हे के घर फल, मिठाई, खाजा , मखाना , बताशा और पान आदि का भार (सनेस) भेजा जाता है । इसकी रस्मे रात में की जाती हैं । सबसे पहले महिलायें मंगल गीत गाती है भगवती का आवाहन होता है ।

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दूल्हा ससुराल से आये कपड़े पहनता है, फिर उसके घर और समाज की महिलाएं उसका चुमावन (चुमाउन) करती हैं । परिवार या समाज के कम से कम पांच बड़े पुरुष दूर्वाक्षत मंत्र का जाप करके दुल्हे को आशीर्वाद देते हैं । चुमावन की रस्म के बाद, दूल्हा अपने बहनोई के साथ पच्चीसी का खेल खेलता है । समाज के लोगों के बीच मखाना, बताशा और पान बांटने की परंपरा है । कही – कही रात्रि में ब्राह्मण भोज का भी आयोजन किया जाता है ।

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लोक गीते में कहा गया है …. आई पूर्णिमा उगल इजोरिया चकमक चमकैय चांन यौ
मिथिला के पाबैन इ कोजागरा बांटु माछ मखान यौ ।

कोजागर पर्व की दंत कथा

वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद मनाए जाने वाले इस पर्व के दौरान आकाश पूरी तरह से स्वच्छ होता है और औषधीय गुणों से भरपूर उसकी किरणें सीधी धरती पर पड़ती हैं । मिथिलांचल में कोजागरा को लेकर कई दंत कथा भी प्रचलित हैं ।
मिथिलांचल के राजा जनक ने अपने पुत्री सीता और दमाद राजा दशरथ पुत्र राम के लिये कोजागरा की पूजा की थी और उपहार स्वरूप पान,बताशा,केला और मखान आदि भेजा था ।

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इसमें देवी अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है । कहा जाता है कि आश्विन माह के कोजागरा पर्व की रात्रि से ही देवी अन्नपूर्णा घर में विराजमान होने लगती हैं । रात्रि में देवी के अन्नपूर्णा स्वरूप की सच्चे मन से पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है और घर में कभी भी अन्न का संकट नहीं आता । इसी मान्यता के साथ, मैथिल लोगों के हर घर में उस रात्रि में देवी अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है । लोगों के बीच पान और मखान बांटा जाता है ।

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पान – मखान की बहुतायत में खेती होती है

गौरतलब हो कि मिथिलांचल प्रतिभावानों की धरती रही है । खान-पान, आतिथ्य सत्कार के लिये भी यह क्षेत्र प्रसिद्ध है । जल की अधिकता के कारण यहां मछली और मखान का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है । मखाना एक सुपर फुड भी है और इसकी ख्याति तो अब विदेश तक पहुंच चुकी है ।

मिथिलांचल की संमृद्ध  परंपरा पर कहा गया है 

पग-पग पोखईर माछ मखान
मधुर वाणी आ मुख में पान

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