रांची : चार दिनों तक चलने वाले सरहुल की जानिए विधि- सरहुल अर्थात खद्दी उरांव आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व है.
यह बसंत ऋतु में चैत्र के शुक्ल पक्ष के तृतीय को मनाया जाता है.
यह पर्व चैत्र पूर्णिमा तक चलता है. इसी त्योहार के बाद उरावों का नव वर्ष शुरू हो जाता है.
ये है विधि
यह प्रकृति पर्व 4 दिनों तक चलता रहता है.
पहले दिन मछली के अभिषेक किए हुए पानी को घर में छिड़का जाता है.
दूसरे दिन उपवास रखा जाता है और पाहन के द्वारा सरई फूल को छत के ऊपर रखा जाता है.
तीसरे दिन पाहन के द्वारा उपवास रखा जाता है.
और गांव के सरना स्थल पर सरई फूल के गुच्छों की पूजा की जाती है.
मुर्गे की बलि दी जाती है.
मुर्गे का मांस और चावल को मिलाकर तहड़ी एक प्रकार की खिचड़ी बनाई जाती है. जिसे गांव में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. चौथे दिन सरहुल के फूलों का विसर्जन किया जाता है।
इस पर्व के दौरान ही पाहन मिट्टी का तीन घड़ा लेता है. उसमे पानी भरता है. अगले दिन तीनों घड़ों को पाहन देखता है. यदि घड़े में पानी का स्तर घट गया तो पाहन अकाल की भविष्यवाणी करता है. यदि पानी का स्तर सामान्य रहा तो उसे उत्तम वर्षा का संकेत माना जाता है.
पहाड़ी देवता का प्रतीक
उस दिन महिलाएं सफेद लाल पाड़ वाली साड़ी पहनती हैं. सफेद रंग, सूर्य देवता तथा लाल रंग पहाड़ी देवता का प्रतीक माना जाता है. सरना झंडा भी सफेद और लाल रंग का होता है. इसी पर्व से जदूर की शुरुआत हो जाती है. लोग खुशी से गा उठते हैं. महुआ बिछे घरी कबड़ कुबूड़, दारू पिए घरी मोके बुलाबे.
विभिन्न जनजातियां के बीच प्रसिद्ध है सरहुल पर्व
सरहुल पर्व को झारखंड की विभिन्न जनजातियां अलग-अलग नाम से मनाती हैं. उरांव जनजाति इसे ‘खुदी पर्व’, संथाल लोग ‘बाहा पर्व’, मुंडा समुदाय के लोग ‘बा पर्व’ और खड़िया जनजाति ‘जंकौर पर्व’ के नाम से इसे मनाती है.