Tuesday, June 24, 2025

झारखंड की सियासी कहानी: अस्थिरता का इतिहास और वर्तमान परिप्रेक्ष्य

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रांची: झारखंड, एक युवा राज्य के रूप में आज 24 साल का हो चुका है, लेकिन इसने अपने छोटे से जीवनकाल में राजनीतिक अस्थिरता के कई अध्याय देखे हैं। राज्य ने 13 मुख्यमंत्री देखे हैं, तीन बार राष्ट्रपति शासन का सामना किया है और निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचते देखा है। जब भी इस राज्य का नाम आता है, तो सियासी अस्थिरता की छवि जेहन में उभरती है। लेकिन इस अस्थिरता के पीछे केवल राजनीति की जोड़-तोड़ का खेल नहीं, बल्कि उस सत्ता के अंकगणित का खेल भी है, जो किसी भी दल को बहुमत के लिए जरूरी 41 सीटों तक नहीं पहुंचने देता।

झारखंड की सियासी कहानी: अस्थिरता का इतिहास और वर्तमान परिप्रेक्ष्य

झारखंड का चुनावी गणित

झारखंड विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 81 है, जिसमें बहुमत के लिए 41 सीटें जरूरी हैं। देखने में यह संख्या मामूली सी लग सकती है, लेकिन जब बात झारखंड के चुनावी समर की हो, तो यह संख्या किसी पहाड़ी चोटी से कम नहीं। चार चुनावों के बाद भी कोई दल इस जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच सका है। यही कारण है कि यहां राजनीति हमेशा जोड़-तोड़ और गठबंधनों से जुड़ी रहती है।

झारखंड की सियासी कहानी: अस्थिरता का इतिहास और वर्तमान परिप्रेक्ष्य

चुनावी इतिहास: जब कोई दल अकेले बहुमत तक नहीं पहुंच सका

झारखंड के चुनावी इतिहास में 2014 सबसे महत्वपूर्ण साल माना जा सकता है, जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 37 सीटों के साथ राज्य में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन यह प्रदर्शन फिर भी बहुमत से दूर था, और इसे किसी दल का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन माना जाता है। इसके बावजूद, 2005 और 2020 के चुनावों में भी कुछ ऐसा ही हुआ।

  • 2005 में बीजेपी ने 30 सीटें जीतीं और सबसे बड़ा दल बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से चूक गई।
  • 2020 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने 30 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरते हुए चुनाव जीते, लेकिन फिर भी सरकार बनाने के लिए अन्य दलों के साथ गठबंधन की जरूरत पड़ी। कांग्रेस ने इस बार 16 सीटें जीतकर पार्टी की ताकत बढ़ाई, जबकि 2005 में उसकी सीटें केवल 9 थीं।

झारखंड की सियासी कहानी: अस्थिरता का इतिहास और वर्तमान परिप्रेक्ष्य

गठबंधन की राजनीति

झारखंड में हर चुनाव में गठबंधन का खेल अहम भूमिका निभाता है। कोई भी दल अकेले बहुमत तक नहीं पहुंच सका है, इसलिये प्रमुख दल अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए छोटे दलों और क्षेत्रीय पार्टियों को अपने साथ जोड़ते हैं।

  • 2014 में बीजेपी ने ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू), जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के साथ गठबंधन किया था।
  • 2020 में जेएमएम ने कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और वामपंथी दलों के साथ गठबंधन किया।

दूसरी ओर, बीजेपी और जेएमएम दोनों ने चुनाव से पहले छोटे वोटबैंक को टार्गेट किया है, ताकि उनके गठबंधन का गणित मजबूत हो और सरकार बनाने में आसानी हो।

झारखंड की सियासी कहानी: अस्थिरता का इतिहास और वर्तमान परिप्रेक्ष्य

चुनावी रणनीति और सतर्कता

पुराने चुनावी ट्रेंड को देखकर सभी दल सतर्क हैं। बीजेपी और जेएमएम दोनों ही गठबंधनों की राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए छोटे दलों और वोटबैंक पर नजर बनाए हुए हैं।

चुनाव के बाद सरकार गठन की कवायद में जोड़-तोड़ से बचने के लिए दोनों प्रमुख पार्टियां पहले ही गठबंधन कर रही हैं, ताकि चुनाव के बाद किसी भी असमंजस का सामना न करना पड़े।

झारखंड की सियासी कहानी: अस्थिरता का इतिहास और वर्तमान परिप्रेक्ष्य

झारखंड की राजनीति को लेकर एक सवाल हमेशा खड़ा होता है: क्या इस बार कोई दल अकेले बहुमत तक पहुंच सकेगा, या फिर पुराने गठबंधन और जोड़-तोड़ की राजनीति का खेल जारी रहेगा? 23 नवंबर 2024 के चुनाव परिणाम इस सवाल का जवाब देंगे और यह तय करेंगे कि कौन सा गठबंधन इस राज्य की सत्ता की कुंजी प्राप्त करेगा। झारखंड की सियासी कहानी में अस्थिरता की यह कहानी केवल राज्य की राजनीति का एक हिस्सा है, लेकिन इसकी जड़ें सत्ता के गणित और गठबंधनों में ही छिपी हुई हैं।

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