रांची: राजधानी में सरहुल पर्व को लेकर जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं। सरहुल जुलूस के सुचारू संचालन और श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन ने सिरमटोली फ्लाईओवर के पास स्थित सरना स्थल के सामने समतलीकरण कार्य शुरू किया है। प्रशासन ने आदिवासी संगठनों की मांग को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र में जरूरी बदलाव किए हैं, जिससे सरहुल महापर्व बिना किसी व्यवधान के संपन्न हो सके।
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रैंप हटाने और समतलीकरण की मांग
आदिवासी संगठनों ने प्रशासन से शिकायत की थी कि सिरमटोली फ्लाईओवर के रैंप के कारण सरहुल जुलूस के संचालन में दिक्कत हो सकती है। इसके बाद जिला प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए फ्लाईओवर के सामने स्थित रैंप को हटा दिया और वहां पड़ी मिट्टी को समतल कर एक खुला मैदान तैयार किया। इससे सरहुल जुलूस में शामिल श्रद्धालुओं को आने-जाने में किसी प्रकार की समस्या न हो और पर्व सुचारू रूप से मनाया जा सके।
प्रशासन की चौकसी और सुरक्षा व्यवस्था
समतलीकरण कार्य के दौरान किसी भी तरह की अव्यवस्था या अप्रिय घटना से बचने के लिए प्रशासन ने भारी पुलिस बल की तैनाती की है। मौके पर एडीएम (लॉ एंड ऑर्डर) सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारी लगातार निगरानी रख रहे हैं। पुलिसकर्मी रैंप के आसपास और सरना स्थल के पास तैनात हैं ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटा जा सके। प्रशासन का स्पष्ट कहना है कि सरहुल महापर्व के दौरान किसी भी तरह की बाधा न आए, यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं।
आदिवासी संगठनों की आपत्ति के बाद मंच निर्माण कार्य रोका गया
सरना स्थल के पास मंच निर्माण का कार्य किया जा रहा था, लेकिन आदिवासी संगठनों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। संगठनों ने प्रशासन को अवगत कराया कि यह मंच सरहुल पर्व की पारंपरिक प्रक्रियाओं में बाधा उत्पन्न कर सकता है। उनकी आपत्ति के बाद प्रशासन ने मंच को तुरंत हटा दिया और समतलीकरण कार्य को प्राथमिकता दी।
तैयारियां अंतिम चरण में
सरहुल पर्व के लिए प्रशासन की तैयारियां अब अपने अंतिम चरण में हैं। समतलीकरण कार्य तेजी से पूरा किया जा रहा है, ताकि जुलूस निकलने के दौरान कोई दिक्कत न हो। इसके अलावा, जिला प्रशासन यह सुनिश्चित करने में लगा है कि सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम रहें और श्रद्धालु शांतिपूर्वक सरहुल महोत्सव मना सकें।
सरहुल झारखंड का प्रमुख पर्व है, जिसे प्रकृति पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर विभिन्न आदिवासी समुदाय अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ पूजा-अर्चना करते हैं और जुलूस निकालते हैं। प्रशासन की ओर से इस बार विशेष इंतजाम किए गए हैं ताकि पर्व पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ संपन्न हो सके।