Monday, June 23, 2025

झारखंड में 9 जून से बालू खनन पर रोक, माफिया की जमाखोरी से कीमतें दोगुनी

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रांची: झारखंड में 9 जून, सोमवार शाम 6 बजे से बालू खनन पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है, जो आगामी 15 अक्टूबर तक जारी रहेगी। यह रोक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश के तहत मानसून के दौरान नदियों के पर्यावरणीय संतुलन को बचाने के उद्देश्य से लगाई गई है। इस अवधि में राज्य के किसी भी नदी घाट से बालू की निकासी नहीं हो सकेगी।

हालांकि आम लोगों की जरूरत को देखते हुए झारखंड स्टेट मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (JSMDC) द्वारा स्टॉक में रखे गए 50 लाख क्यूबिक फीट बालू से आपूर्ति की व्यवस्था की गई है। बावजूद इसके, बाजार में बालू की जमाखोरी और कालाबाजारी शुरू हो चुकी है, जिससे कीमतों में भारी उछाल देखने को मिल रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार, महज पांच दिन पहले एक हाईवा (500 सीएफटी) बालू की कीमत ₹28,000 थी, जो अब ₹33,000 हो गई है। वहीं, टर्बो (100 सीएफटी) की दर ₹4,500 से बढ़कर ₹6,500 तक पहुंच गई है। राज्य सरकार ने बालू की दर ₹7.87 प्रति सीएफटी तय की है, लेकिन वर्तमान में यह दर दो से तीन गुना तक वसूली जा रही है।

जिलावार बालू की वर्तमान दरें इस प्रकार हैं:

  • रांची: ₹6500 (100 सीएफटी)

  • लातेहार: ₹1000 (100 सीएफटी)

  • गढ़वा: ₹4500 (100 सीएफटी)

  • सिमडेगा: ₹3000 (80 सीएफटी)

  • गुमला: ₹1600 (100 सीएफटी)

  • पलामू: ₹4000 (100 सीएफटी)

  • बोकारो: ₹4500 (80 सीएफटी)

  • खूंटी: ₹6000 (100 सीएफटी)

  • गिरिडीह: ₹1800 (100 सीएफटी)

  • जामताड़ा: ₹2000 (100 सीएफटी)

  • चाईबासा: ₹6000 (120 सीएफटी)

  • चतरा: ₹3500 (100 सीएफटी)

झारखंड में श्रेणी-दो के कुल 444 बालू घाट चिन्हित किए गए हैं, जिनमें से केवल 68 घाटों को पर्यावरणीय स्वीकृति (EC) मिली है। वर्तमान में केवल 32 घाटों का संचालन हो रहा है, जिनमें से 28 घाट जेएसएमडीसी द्वारा और 4 निजी तौर पर संचालित किए जा रहे हैं।

सरकार ने हाल ही में कैबिनेट की बैठक में निर्णय लिया है कि श्रेणी-दो के इन घाटों का टेंडर अब जिला स्तर पर होगा और संचालन की जिम्मेदारी निविदा प्राप्त एजेंसियों को सौंपी जाएगी। इसी के तहत ‘झारखंड सैंड माइनिंग रूल्स 2025’ को भी मंजूरी दी गई है।

हालांकि, निगरानी व्यवस्था बेहद कमजोर है और जमीनी स्तर पर एनजीटी के नियमों का अनुपालन संदिग्ध है। यदि जमाखोरी और अवैध उठाव पर लगाम नहीं लगी, तो न केवल पर्यावरण को क्षति पहुंचेगी बल्कि आम लोगों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि बालू की इस कृत्रिम किल्लत से निर्माण और विकास कार्य बुरी तरह प्रभावित होंगे। साथ ही, कालाबाजारी से सरकार को राजस्व की हानि और आम जनता को आर्थिक बोझ उठाना पड़ेगा।


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