राजीव गांधी की हत्या के 6 दोषी जेल से आएंगे बाहर

सुप्रीम कोर्ट ने छह आरोपियों को रिहा करने का निर्देश दिया

नई दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे

6 दोषी जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नलिनी और

आरपी रविचंद्रन समेत छह आरोपियों को रिहा करने का निर्देश दिया.

हत्यारे जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे थे. इससे पहले कोर्ट ने इस मामले के

दोषी पेरारिवलन को भी इसी आधार पर रिहा किया था.

नलिनी श्रीहरन ने खटखटाया था सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

इससे पहले राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रही नलिनी श्रीहरन ने

अपनी समय से पहले रिहाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

नलिनी ने मद्रास हाई कोर्ट के 17 जून के आदेश को चुनौती दी थी,

जिसने उनकी जल्द रिहाई के लिए याचिका खारिज कर दी थी और

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए सह-दोषी एजी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था.

हाई कोर्ट ने खारिज की थी याचिका

हाई कोर्ट ने 17 जून को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी नलिनी श्रीहरन और रविचंद्रन की याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें राज्य के राज्यपाल की सहमति के बिना उनकी रिहाई का आदेश देने का आदेश दिया गया था. कोर्ट ने उनकी याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा था, उच्च न्यायालयों के पास संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत ऐसा करने की शक्ति नहीं है, जबकि सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्ति प्राप्त है.

पेरारिवलन को रिहा करने का दिया था आदेश

वहीं, संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्ति का इस्तेमाल करते हुए, हाई कोर्ट ने 18 मई को पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था, जिन्होंने 30 साल से अधिक जेल की सजा काट ली थी और कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल को ‘बाध्यकारी’ सलाह नहीं भेजनी चाहिए थी. कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत सजा में बदलाव/छूट से संबंधित मामलों में राज्य मंत्रिमंडल की सलाह राज्यपाल के लिए बाध्यकारी है.

अब तक मामले में क्या कुछ हुआ

राजीव गांधी की 21 मई, 1991 की रात को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में एक महिला आत्मघाती हमलावर द्वारा हत्या कर दी गई थी, जिसकी पहचान धनु के रूप में एक चुनावी रैली में हुई थी. मई 1999 के अपने आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने चार दोषियों पेरारिवलन, मुरुगन, संथान और नलिनी की मौत की सजा को बरकरार रखा था.

हालांकि, 2014 में, इसने पेरारीवलन की मौत की सजा को संथान और मुरुगन के साथ-साथ उनकी दया याचिकाओं पर फैसला करने में 11 साल की देरी के आधार पर उम्रकैद में बदल दिया. नलिनी की मौत की सजा को 2001 में इस आधार पर आजीवन कारावास में बदल दिया गया था कि क्योंकि उसकी एक बेटी है.

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