रांची : Forming Winning Formula By RSS – नामकुम से भाजपा को झारंखड जीतने का फॉर्मूला देंगे संघ प्रमुख मोहन भागवत, प्रचारकों की अखिल भारतीय बैठक शुरू। झारखंड की राजधानी रांची के नामकुम में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रांत प्रचारकों की बैठक शुक्रवार को शुरू हो गई। रविवार शाम तक चलने वाली इस बैठक में आधिकारिक तौर पर तो संघ के प्रचारक संगठन के विस्तार और शताब्दी वर्ष पर चर्चा में जुटे हैं लेकिन पूरे आयोजन में एक बड़ी बात यह है कि इसमें भाजपा के लिए संघ प्रमुख ड़ॉ. मोहन भागवत की से झारखंड में चुनावी फतह का गूढ़ मंत्र दिया जाना है। चुनावी साल होने की वजह से रांची की बैठक में पहुंचे संघ के उच्च पदाधिकारियों की चर्चा का केंद्र बिंदु झारखंड ही रहेगा और झारखंड में राष्ट्रवादी शक्तियों को सत्ता तक पहुंचाने के तरीकों पर मंथन में निकलने वाला फार्मूला भी दिया जाना तय है।
अनायास ही रांची में नहीं जुटे हैं संघ के तमाम अहम ओहदेदार
झारखंड में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने है और इसीलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की यहां पर अखिल भारतीय कार्यक्रम के मायने भी काफी अहम है। यहां पर पिछले 5 साल से भाजपा सत्ता से बाहर है। आदिवासी बाहुल्य इस राज्य में लंबे वक्त से संघ का दबदबा रहा है और ऐसे में संघ की इस बैठक से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सियासी रणनीतिकारों को जीत का मुक्कमल मंत्र और फार्मूला मिलने की काफी उम्मीदें हैं तो यह अनायास ही नहीं है। झारखंड में चुनावी वर्ष के दौरान राजधानी रांची में आरएसएस की इस बैठक के सियासी अहमियत को इसी से समझा जा सकता है कि संघ के तमाम बड़े ऱणनीतिक चेहरे शिरकत कर रहे हैं। इसमें सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के साथ-साथ सभी सह सरकार्यवाह, सभी प्रांतों के प्रांत प्रचारक, सह प्रांत प्रचारक और क्षेत्र प्रचारक के अलावा सह क्षेत्र प्रचारक, सभी कार्य विभागों के अखिल भारतीय अधिकारी और संघ प्रेरित संगठनों के अखिल भारतीय संगठन मंत्री भी पहुंचे हैं। इस दौरान क्षेत्रीय स्तर पर संगठन में दायित्व और बदलाव को लेकर गंभीर चर्चा होना भी लाजिमी है।
आदिवासियों को साथ जोड़ने के क्रम में संघ ने सियासी तौर पर अपनों के कसे पेंच
झारखंड में संघ के सामने आदिवासियों को भी साधने की चुनौती है। राज्य में करीब 26 प्रतिशत आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। उनके लिए ही डेमोग्राफी वाले मुद्दे पर गंभीरता से मंथन जारी है ताकि अकाट्य तर्कों के साथ ज्वलंत समस्या और उसके समाधान के साथ आदिवासियों को बड़े पैमाने पर साथ जोड़ा जा सके। संघ की ओर से झारखंड में आदिवासियों को साधने पर लंबे समय से काम लगातार जारी है। अकेले संथाल परगना में संघ के 8 हजार शिक्षक स्कूल चल रहे हैं। उसके बावजूद आदिवासी हिंदुत्वादी संगठन की ओर मूव नहीं कर रहे हैं। यही चुनाव को सामने देखते हुए संघ अपने आनुषंगिक संगठनों के विस्तार में इसे बड़ी चुनौती मानकर वैकल्पिक मुद्दों और तरीकों को अपनाने में जुटा है। इसी क्रम में घटती आदिवासियों की आबादी और मूलवासियों के क्षेत्र में बढ़ी मुस्लिम आबादी का मुद्दा प्रमुखता से उठाने पर मंथन हो रहा है। उसके बाद संघ ने वर्ष 2022 में अपने संगठन में आखिरी बार बदलाव किया थे, लेकिन हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा से संघ का तालमेल ठीक नहीं रहा और वह बड़ी वजह रही कि कई जगहों पर खुलकर वही हार का कारण भी बना। अब उसी कमी को सही करने पर फोकस है और सभी के पेंच कसे जा रहे हैं।
जीत का फार्मूला क्रियान्वित करने को स्वयंसेवकों भाजपा में भेजेगा संघ
आदिवासी बाहुल्य झारखंड में लंबे वक्त से संघ का दबदबा रहा है। इस राज्य को गठन हुए करीब 24 साल हुए हैं और इसमें 14 साल भाजपा ही राज्य की सत्ता में रही है। ऐसे में संघ की इस बैठक का भारतीय जनता पार्टी के लिए काफी मायने हैं। तीन दिवसीय इस अखिल भारतीय बैठक में संघ की ओर से झारखंड में कुछ अहम बदलाव भी होना है। बैठक के पहले दिन ही जो सूचनाएं छनकर सामने आई हैं, उसके मुताबिक संघ क्षेत्रीय स्तर पर कार्य योजना का विस्तार करेगा। झारखंड में संघ ने 2025 का भी रोडमैप तैयार किया है। इसके तहत झारखंड के हर बस्ती और वार्ड में संघ की शाखाएं लगाने का लक्ष्य रखा गया है। साल 2025 संघ का शताब्दी वर्ष है। इसी क्रम में सबसे अहम बात यह है कि कुछ संघ कार्यकर्ताओं यानी स्वयंसेवकों को भारतीय जनता पार्टी में भेजा जाएगा। पहले भी संघ अपने स्वयंसेवकों को सक्रिय राजनीति में भेज चुका है और पीएम नरेंद्र मोदी से उसी के ताजा उदाहरण हैं। अब भी भाजपा में राष्ट्रीय से लेकर प्रदेश स्तरीय संगठन महामंत्री पदों पर मौजूदा समय में भी संघ के ही स्वयंसेवक कमान संभाल रहे हैं।
रांची और झारखंड आरएसएस के लिए शुरू से रहा है काफी अहम
ऐसा नहीं है कि झारखंड राज्य के गठन के बाद से ही इस आदिवासी बहुल राज्य पर आरएसएस ने फोकस किया है। रांची में 1948 के आसपास आरएसएस की पहली शाखा लगी थी। उसके बाद वर्ष 1985 में संघ ने रांची को दक्षिण बिहार का मुख्यालय बनाया था और तब झारखंड और बिहार एक ही राज्य थे। संघ ने अपने काम को आसान बनाने के लिए बिहार को 2 भाग (उत्तर और दक्षिण) में बांटा था। फिर वर्ष 2000 में जब झारखंड अलग राज्य बना तो संघ ने आदिवासी बहुल इस राज्य पर फोकस करने को झारखंड में 4 सांगठनिक मंडल ( देवघर, हजारीबाग, जमशेदपुर और रांची) गठित किए। अभी भी इसी आधार पर संघ यहां अपना काम करती है। वर्ष 2023 में आरएसएस की ओर से झारखंड को लेकर एक ब्योरा तैयार हुआ था जिसके मुताबिक झारखंड के 540 स्थानों पर संघ की 838 शाखाएं लगाई जा रही थीं। इतना ही नहीं वर्ष 2023 में संघ के कार्यकर्ताओं ने झारखंड में 523 साप्ताहिक बैठकों का आयोजन किया था जो कि वर्ष 2018 के आंकड़ों से करीब डेढ़ गुना ज्यादा रहा। वर्ष 2018 में संघ की 415 स्थानों पर 676 शाखाएं लगाई जा रही थी, जबकि उस वक्त सप्ताहिक मिलन के सिर्फ 234 कार्यक्रम ही हुए थे।