रांची: झारखंड में 1980 से जारी जमीन सर्वे का काम अगले छह महीने में पूरा होने की उम्मीद है। राज्य सरकार ने शुक्रवार को झारखंड हाईकोर्ट को यह जानकारी दी। मामला जनहित याचिका से संबंधित है, जिसे गोकुलचंद नामक व्यक्ति ने दाखिल किया था। याचिका में राज्य में हो रही जमीनों की गड़बड़ियों और माफियाओं की सक्रियता को देखते हुए जमीन का सर्वे प्राथमिकता से पूरा कराने की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान हुई चर्चा
मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और जस्टिस दीपक रोशन की बेंच ने सरकार से इस मामले में प्रगति रिपोर्ट मांगी। सरकार की ओर से बताया गया कि लातेहार और लोहरदगा जिलों में सर्वे का काम पूरा हो चुका है, जबकि अन्य जिलों में कार्य प्रगति पर है। इस प्रक्रिया को पूरा होने में कम से कम छह महीने का समय लगेगा। कोर्ट ने सरकार को फरवरी में प्रगति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।
जमीन विवादों का प्रमुख कारण
याचिकाकर्ता ने बताया कि झारखंड में 1932 के बाद जमीनों का सर्वे नहीं हुआ है, जबकि यह प्रक्रिया हर 10 साल में होनी चाहिए थी। इस लापरवाही का नतीजा यह है कि सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज 80% जमीनों की प्रकृति बदल चुकी है। माफियाओं द्वारा दस्तावेजों में हेरफेर कर जमीनों का अवैध अधिग्रहण किया जा रहा है। जमीन विवादों के कारण हत्या और अन्य आपराधिक घटनाओं में भी बढ़ोतरी हुई है।
समयबद्ध सर्वे की आवश्यकता
याचिका में आग्रह किया गया कि जमीन सर्वे के लिए समय सीमा तय की जाए, ताकि गरीब और वंचित वर्ग की जमीनों को माफियाओं के चंगुल से बचाया जा सके। कोर्ट ने इन तथ्यों को गंभीरता से लेते हुए सरकार को जमीन सर्वेक्षण जल्द पूरा करने के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए।
सर्वेक्षण से क्या बदलेगा?
सरकार के मुताबिक, जमीन सर्वेक्षण पूरा होने के बाद यह स्पष्ट होगा कि जमीनों पर किसका अधिकार है। साथ ही, सरकारी रिकॉर्ड को अपडेट कर अवैध कब्जों को रोका जा सकेगा। इससे राज्य में भूमि विवादों और माफियाओं की सक्रियता पर भी लगाम लगेगी।
अगली सुनवाई फरवरी में होने वाली है, जिसमें सरकार की प्रगति रिपोर्ट पर चर्चा की जाएगी। झारखंड में जमीन सर्वे का यह कदम राज्य की जमीन व्यवस्था को सुधारने की दिशा में अहम साबित हो सकता है।
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