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ससुराल का चौखट और पड़ोसी का आंगन: सीता सोरेन की घर वापसी!

रांची: झारखंड की राजनीति में इन दिनों ससुराल और पड़ोसी का आंगन चर्चा में है। बात सीधी है—जिस घर को छोड़कर कोई रूठकर चला जाए, अगर वही घर फिर से अपने दरवाजे खोल दे, तो सवाल उठता है कि जाने वाला बदला, या बुलाने वाला!

सीता सोरेन, जो कभी झामुमो की अपनी पारिवारिक चौखट लांघकर भाजपा के आंगन में चली गई थीं, अब वापस लौटने को बेताब दिख रही हैं। यह तो वही बात हो गई कि “जब सासू नाराज हो, तो पड़ोसी के घर की रोटी भी स्वादिष्ट लगती है।” लेकिन राजनीति की थाली में हर निवाला एक जैसा नहीं होता, और हर घर में परोसी जाने वाली दाल अलग होती है।

झामुमो स्थापना दिवस के मंच पर अगर सीता सोरेन नजर आईं, तो यह वही कहानी होगी जिसे भारतीय राजनीति बार-बार दोहराती है— “रूठे राजा को मनाने में रानी बदल जाती है।”

आना-जाना लगा रहता है! सीता सोरेन खुद कह रही हैं कि राजनीति में आना-जाना लगा रहता है। बात भी सही है, यहां नेता दल बदलते हैं, जैसे लोग कपड़े बदलते हैं। लेकिन फर्क बस इतना है कि आम आदमी के कपड़े बदलने से उसकी छवि नहीं बदलती, पर नेताओं के दल बदलने से उनकी विचारधारा तक बदल जाती है। यह तो वही बात हो गई— “गंगा नहाने से पाप धुल जाए, और दल बदलने से इतिहास!”

भाजपा की मुश्किलें और झामुमो की गणित झारखंड की राजनीति में यह दल-बदल ठीक वैसे ही चलता है, जैसे गाँव की चौपाल में ताश के पत्ते फेंके जाते हैं— “जिस पत्ते से जीतने की उम्मीद खत्म, उसे छोड़ दो!” भाजपा के लिए भी यही खेल चल रहा है। सीता सोरेन जैसी नेता, जिनकी झामुमो में पारिवारिक और राजनीतिक पकड़ मजबूत थी, भाजपा में जाकर ज्यादा असर नहीं दिखा पाईं।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि हेमंत सोरेन क्या फैसला लेंगे? क्या वे अपने घर की पुरानी सदस्य को फिर से जगह देंगे? या फिर राजनीति में परिवार की परिभाषा सिर्फ वोटों तक सीमित रह जाएगी? अगर सीता सोरेन की घर वापसी होती है, तो झामुमो यह संदेश देगा कि “घर का भेदी ही सही, लेकिन अगर लौटकर आया है तो उसे माफ करना ही समझदारी है।” लेकिन अगर हेमंत सोरेन ने कड़ा रुख अपनाया, तो यह मानना पड़ेगा कि “जो घर छोड़कर गया, उसकी वापसी पर दाल में कुछ काला है!”

झारखंड की राजनीति में यह देखना दिलचस्प होगा कि “घर से भागे हुए को ससुराल अपनाएगी या पड़ोसी ही नया रिश्तेदार बनेगा?” लेकिन इतना तय है कि “चुनावी मौसम में नेताओं के रिश्ते भी बदलते हैं, और वादे भी।” अब देखना यह है कि यह सियासी गृह प्रवेश प्रेम विवाह होगा या फिर मजबूरी का गठबंधन!

 

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