रांची: झारखंड के विश्वविद्यालयों में कार्यरत करीब 700 असिस्टेंट प्रोफेसरों का प्रमोशन एक बार फिर विवादों में उलझ गया है। झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) ने शिक्षकों के एपीआई (Academic Performance Indicator) स्कोर और अन्य एकेडमिक रिकॉर्ड की मांग की है, जबकि विश्वविद्यालयों का दावा है कि ये दस्तावेज पहले ही भेजे जा चुके हैं।
17 साल पहले हुई नियुक्ति, अब तक नहीं मिला प्रमोशन
वर्ष 2008-2012 के बीच नियुक्त इन असिस्टेंट प्रोफेसरों को UGC रेगुलेशन 2010 के तहत स्टेज-1 से स्टेज-2 में प्रमोशन मिलना था। इसके लिए विश्वविद्यालयों ने करीब 18 माह पहले स्क्रीनिंग कमेटी के माध्यम से जेपीएससी को प्रस्ताव भेजा था। रांची यूनिवर्सिटी और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी समेत राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों ने आयोग को स्क्रूटनी के बाद प्रमोशन प्रस्ताव भेजा।
जेपीएससी की आपत्ति: विषय विशेषज्ञ और API स्कोर की जरूरत
जेपीएससी ने जवाबी पत्र में कहा है कि स्क्रीनिंग कमेटी में विषय विशेषज्ञ (Subject Expert) नहीं थे, जबकि यूजीसी के नियमों के अनुसार उनका होना जरूरी है। साथ ही, आयोग ने असिस्टेंट प्रोफेसरों से API स्कोर, अध्यापन कार्य, परीक्षा मूल्यांकन, NSS/NCC गतिविधियों, शोध कार्य, सेमिनार, रिफ्रेशर-ओरिएंटेशन कोर्स, पीएचडी निर्देशन, लेखन और प्रकाशन से जुड़े रिकॉर्ड भी मांगे हैं।
विश्वविद्यालयों की प्रतिक्रिया: सभी रिकॉर्ड पहले ही भेजे गए
विभिन्न विश्वविद्यालयों ने स्पष्ट किया है कि सभी आवश्यक दस्तावेज और एपीआई स्कोर पहले ही जेपीएससी को उपलब्ध करा दिए गए हैं। उनका कहना है कि स्क्रीनिंग कमेटी ने राज्य सरकार की अधिसूचना के अनुरूप प्रस्ताव बनाकर भेजा था। ऐसे में अब दोबारा दस्तावेज मांगना प्रक्रिया को और जटिल बना रहा है।
प्रमोशन रुकने से विवि प्रशासन पर असर
राज्य की उच्च शिक्षा व्यवस्था पर इसका सीधा असर पड़ा है। वीसी (कुलपति), प्रोवीसी, प्रिंसिपल, रजिस्ट्रार, परीक्षा नियंत्रक जैसे प्रमुख पदों के लिए योग्य उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं। अधिकांश विभागों में Acting HODs के माध्यम से काम चल रहा है। राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति बनने की पात्रता केवल कुछ ही शिक्षकों के पास बची है।
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