रांची: झारखंड की राजनीति में हलचल मचाने वाला एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने विशेष कोर्ट को सूचित किया है कि पूर्व मंत्री आलमगीर आलम के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में राज्य सरकार से अब तक अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिली है। सूत्रों के अनुसार, राज्य सरकार ने अनुमति देने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया है, जिससे ईडी की जांच और कानूनी प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।
जानकारी के मुताबिक, ईडी ने करीब पांच महीने पहले आलमगीर आलम, उनके तत्कालीन ओएसडी संजीव लाल और ग्रामीण विकास विभाग के तत्कालीन अभियंता प्रमुख वीरेंद्र राम के खिलाफ अभियोजन की अनुमति मांगी थी। यह मांग सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के आलोक में की गई थी जिसमें नवंबर 2024 में यह स्पष्ट किया गया था कि किसी भी सरकारी अधिकारी या जनप्रतिनिधि के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर मामलों में मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार की अनुमति अनिवार्य होगी।
सूत्रों के अनुसार, लंबे समय तक कोई जवाब नहीं मिलने पर ईडी ने विशेष अदालत में याचिका दाखिल कर आग्रह किया है कि सरकार की ओर से 120 दिनों तक कोई उत्तर नहीं दिए जाने की स्थिति में इसे ‘चुप स्वीकृति’ (deemed approval) माना जाए और अदालत अभियोजन की अनुमति प्रदान करे।
क्या हैं आरोप?
सूत्रों का कहना है कि पूर्व मंत्री आलमगीर आलम पर ग्रामीण विकास मंत्री रहते हुए विभागीय टेंडरों में बड़े पैमाने पर कमीशन लेने का आरोप है। इन आरोपों के अनुसार, टेंडर आवंटन की प्रक्रिया में गड़बड़ी कर करोड़ों रुपये की अवैध कमाई की गई, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग के माध्यम से सफेद धन में बदला गया।
इस मामले में सबसे पहली बड़ी कार्रवाई मई 2024 में हुई थी, जब ईडी ने आलमगीर आलम से करीब 10 घंटे की पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी से कुछ दिन पहले उनके तत्कालीन निजी सचिव संजीव लाल के घरेलू नौकर जहांगीर आलम के घर से छापेमारी में ₹37 करोड़ से अधिक नकदी बरामद हुई थी। इस बरामदगी के बाद ईडी ने संजीव लाल और आलमगीर आलम दोनों को हिरासत में लिया था।
अब कहां हैं आलमगीर आलम?
पूर्व मंत्री आलमगीर आलम फिलहाल रांची के होटवार केंद्रीय कारा में न्यायिक हिरासत में बंद हैं। गिरफ्तारी के बाद उन्होंने मंत्री पद और विधायक पद दोनों से इस्तीफा दे दिया था। वे कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और पाकुड़ विधानसभा से चार बार विधायक रह चुके हैं।
्रईडी द्वारा अभियोजन की अनुमति नहीं दिए जाने को लेकर कोर्ट में की गई याचिका से यह मामला अब न्यायिक समीक्षा के दायरे में पहुंच चुका है। सूत्रों का कहना है कि यदि कोर्ट राज्य सरकार की चुप्पी को सहमति मान लेता है, तो ईडी को आलमगीर आलम और अन्य आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने और मुकदमा चलाने की अनुमति मिल सकती है।
वहीं दूसरी ओर, सरकार के इस फैसले को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं। विपक्ष इसे सत्ता के प्रभाव का दुरुपयोग बता रहा है, जबकि सत्तापक्ष इस पर अब तक चुप्पी साधे हुए है।