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घाटशिला उपचुनाव 2025 में झामुमो-भाजपा आमने-सामने। एसटी आरक्षित इस सीट पर पुराने मुद्दे और रणनीतिक महत्व चुनावी समीकरण तय करेंगे।
रांची: घाटशिला विधानसभा सीट नवंबर में होने वाले उपचुनाव के साथ झारखंड की सियासत का केंद्र बनने जा रही है। चुनाव आयोग की तैयारियों से साफ है कि बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही यहां उपचुनाव भी कराया जाएगा। यह उपचुनाव दूसरी बार बनी हेमंत सरकार के कार्यकाल का पहला बड़ा इम्तिहान होगा।
यह सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है। झारखंड विधानसभा की 81 सीटों में से 28 एसटी कोटे की हैं, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा केवल एक ही एसटी सीट जीत पाई थी। दिलचस्प बात यह है कि घाटशिला से झामुमो उम्मीदवार दिवंगत रामदास सोरेन ने भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल सोरेन को 22,446 मतों से हराया था। अब उनकी मृत्यु के बाद यह सीट सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों के लिए हॉट केक बन गई है।
Key Highlights
नवंबर में घाटशिला उपचुनाव संभावित
यह सीट एसटी आरक्षित, सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए अहम
चुनाव आयोग ने 2 सितंबर से मतदाता सूची पुनरीक्षण शुरू किया
झामुमो-भाजपा के नेताओं का प्रवास जारी
पुराने मुद्दे फिर चुनावी एजेंडे में
राजनीतिक हलचल तेज
चुनाव आयोग ने 2 सितंबर से मतदाता सूची का विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण कार्य शुरू कर दिया है। बूथों पर अधिकतम 1200 वोटरों की बाध्यता को देखते हुए रेशनेलाइजेशन किया जा रहा है। इधर, झामुमो और भाजपा दोनों ने ही अपने-अपने नेताओं को क्षेत्र में उतार दिया है। संभावित उम्मीदवारों की खोज जारी है और लगातार प्रवास हो रहे हैं।
पिछले चार चुनावों का लेखा-जोखा
2009: झामुमो के रामदास सोरेन ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप बलमुचू को 1,192 वोटों से हराया।
2014: भाजपा के लक्ष्मण टुडू ने झामुमो के रामदास सोरेन को 6,403 वोटों से हराकर खाता खोला।
2019: झामुमो के रामदास सोरेन ने फिर जीत दर्ज की।
2024: रामदास सोरेन ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल की, भाजपा के बाबूलाल सोरेन को 22,446 मतों से हराया।
पुराने मुद्दे फिर चर्चा में
घाटशिला को अलग जिला बनाने की मांग, बंद खदानों को चालू कराने और किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने जैसे पुराने मुद्दे इस चुनाव में एक बार फिर मुख्य एजेंडा बनेंगे।
रणनीतिक महत्व
घाटशिला विधानसभा क्षेत्र में घाटशिला, धालभूमगढ़, मुसाबनी और गुड़ाबांधा का आधा हिस्सा आता है। यह क्षेत्र उत्तर में पश्चिम बंगाल और दक्षिण में ओडिशा की सीमा से सटा है, इसलिए राजनीतिक और रणनीतिक दोनों दृष्टिकोण से अहम है।
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