रांची। झारखंड का कुड़मी (कुड़मी महतो) समुदाय एक बार फिर सुर्खियों में है। खेती-किसानी से जुड़े इस समुदाय की सबसे बड़ी मांग है – अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा और कुर्माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करना।
कुड़मी महतो समुदाय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
कुड़मी महतो समुदाय परंपरागत रूप से किसान रहा है। ये लोग झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बड़े हिस्से में फैले हुए हैं। अपनी मातृभाषा कुर्माली और त्योहारों जैसे करमा, तुसु, बंदना, चैती परब और झुमैर नृत्य के लिए यह समुदाय जाना जाता है।
कुड़मी महतो समुदाय की आरक्षण की मांग
वर्तमान में कुड़मी महतो को OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) में रखा गया है। लेकिन उनका कहना है कि 1950 से पहले उन्हें ST सूची में शामिल किया गया था और बाद में बिना वजह हटा दिया गया।
इसी आधार पर वर्षों से यह समुदाय ST दर्जे की मांग करता रहा है।
कुड़मी महतो समुदाय का आंदोलन और विरोध
हाल ही में कुड़मी संगठनों ने रेल रोको आंदोलन किया, जिससे झारखंड और ओडिशा में ट्रेन सेवाएँ ठप हो गईं।
आंदोलनकारियों की दो प्रमुख माँगें थीं: ST दर्जा और कुर्माली भाषा को आठवीं अनुसूची में स्थान।
सरकार ने वार्ता का आश्वासन देकर आंदोलन खत्म करवाया, लेकिन संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर मांगें पूरी नहीं हुईं तो बड़ा आंदोलन होगा।
दूसरी ओर, झारखंड के कई आदिवासी संगठन इस मांग का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि कुड़मी को ST में शामिल करने से असली आदिवासियों के अधिकार और आरक्षण प्रभावित होंगे।
राजनीतिक महत्व
झारखंड की राजनीति में कुड़मी महतो की संख्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अनुमान है कि राज्य की जनसंख्या में इनकी हिस्सेदारी 10–12% के करीब है। यही कारण है कि हर चुनाव में सभी बड़ी पार्टियाँ इस समुदाय को लुभाने की कोशिश करती हैं।
आगे का रास्ता
फिलहाल कुड़मी महतो की ST मांग पर कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।
केंद्र और राज्य सरकारों के बीच यह मुद्दा अटका हुआ है।
अगर यह समुदाय ST सूची में शामिल होता है, तो झारखंड की सामाजिक और राजनीतिक तस्वीर बदल सकती है।
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