पटना : बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने विधानसभा चुनाव से पहले सीएम नीतीश कुमार और चिराग पासवान को बड़ा झटका लगा है। पूर्णिया के पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा, बांका के जदयू सांसद गिरधारी यादव के बेटे चाणक्य प्रकाश, वैशाली के अजय कुशवाहा और जहानाबाद के पूर्व विधायक राहुल शर्मा राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में शामिल हुए उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी ने सदस्यता दिलवायी। तेजस्वी यादव की मौजूदगी में यह सदस्यता ग्रहण हुआ।
संतोष कुशवाहा कोइरी समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं
पूर्णिया के पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा कोइरी समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। संभावना है कि वे धमदाहा विधानसभा सीट से मंत्री लेसी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ सकते हैं। कुशवाहा का राजद में जाना इस सीट पर नए समीकरण बना सकता है, और कोइरी वोट बैंक में राजद की पकड़ मजबूत करने में मददगार साबित हो सकता है।
जहानाबाद के पूर्व विधायक राहुल शर्मा भूमिहार जाति से आते हैं
जहानाबाद के पूर्व विधायक राहुल शर्मा भूमिहार जाति से आते हैं। उनके पिता जगदीश शर्मा मगध क्षेत्र में प्रभावशाली भूमिहार नेता थे, और इस समुदाय पर उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। राहुल शर्मा की राजद में एंट्री मगध राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकती है, और तेजस्वी यादव को भूमिहार बहुल इलाकों में मजबूत करने में मदद करेगी।
गिरधारी के बेटे चाणक्य प्रकाश की RJD में एंट्री से पार्टी को नए वोट बैंक साधने में मदद मिलेगी
बांका से जदयू सांसद गिरधारी यादव के बेटे चाणक्य प्रकाश की राजद में एंट्री से पार्टी को नए वोट बैंक साधने में मदद मिलेगी। जदयू के इन तीन बड़े नेताओं का राजद में जाना नीतीश कुमार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, खासकर एनडीए में सीट शेयरिंग की चर्चाओं के बीच। तेजस्वी यादव की इस रणनीति से महागठबंधन को बिहार चुनाव 2025 में फायदा हो सकता है। राजद को धमदाहा और मगध क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाने में मदद मिल सकती है, साथ ही कुशवाहा और भूमिहार वोट बैंक में राजद की पैठ बढ़ने की संभावना है।
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तेजस्वी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश कर रहे हैं
इस सियासी उलटफेर से साफ है कि तेजस्वी यादव सोशल इंजीनियरिंग के जरिए जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। राजद में इन नेताओं के शामिल होने से महागठबंधन को मजबूती मिल सकती है, और बिहार की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं। ये घटनाक्रम दिखाता है कि बिहार चुनाव 2025 में गठबंधनों के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है और दलों के बीच नेताओं का आना-जाना सियासी समीकरणों को प्रभावित कर रहा है।
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