पीई क्यों, सीधे एफआईआर दर्ज कर 15 से 20 दिनों में मामला निपटाएं
रांची : एसीबी ने सरकार से पूर्व मंत्री और विधायक सरयू राय के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में
पीई दर्ज कर जांच की अनुमति मांगी है. इस पर निर्दलीय विधायक सरयू राय ने
प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि पीई क्यों, सीधे एफआईआर दर्ज कर 15 दिनों में मामला निपटाएं.
सरयू राय पर मंत्री रहने के दौरान एनजीओ युगांतर भारती के माध्यम से
सरकारी धन के दुरुपयोग को लेकर शिकायत दर्ज कराई गई है.
सरयू राय: हर तरीके के जांच का करूंगा स्वागत
इस संबंध में उन्होंने कहा कि यही आरोप पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के समर्थकों ने
मेरे उपर लगाया था. उनका एक शिष्टमंडल तत्कालीन राज्यपाल महोदया से
मिलकर इसकी जांच सीबीआई से कराने का मांग किया था.
उस समय उन्होंने एसीबी समेत अन्य सक्षम संस्थाओं को भी जांच के लिए लिखा था
एवं परिवाद पत्र दिया था. उस समय भी मैंने कहा था कि
इस बारे में हर तरीके के जांच का स्वागत करूंगा.
ऐसे करती है परिवाद की जांच
संभवतः भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को ऐसा ही परिवाद पत्र मिला होगा.
परिवाद पत्र के सत्यापन एवं आईआर का जो नतीजा मिला होगा, उसके आधार पर
उन्होंने निगरानी विभाग से पीई की अनुमति मांगी होगी.
एसीबी में कोई परिवाद जाँच के लिए प्राप्त होता है तो एसीबी
निम्नांकित प्रक्रिया के अनुरूप परिवाद की जाँच करती है-
(क) पहले परिवाद का सत्यापन किया जाता है.
(ख) इसके बाद इस पर इंटेलिजेंस रिपोर्ट (आईआर) बनाई जाती है.
(ग) इंटेलिजेंस रपोर्ट (आईआर) में यदि परिवाद पत्र में लगे आरोप सत्य के करीब
प्रतीत होते है तब एसीबी प्रारंभिक जाँच (पीई) की अनुमति सरकार से मांगती है.
(घ) पीई के दौरान आरोपों में सत्यता होने के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं
तब चौथा चरण प्राथमिकी दर्ज करके कानूनी कार्यवाई करने की होती है.
मुझे उम्मीद है कि एसीबी ने पीई के लिए विभाग से अनुमति मांगने से पहले निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन किया होगा.
(ड़) अपवाद स्वरूप न्यायालय अथवा सरकार एसीबी को एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई करने का आदेश देती है तब उपर्युक्त प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक नहीं होता है.
बाबा कम्प्यूटर्स को अधिक दर पर वायॅस मैसेज (ओबीडी) का आदेश देना
इस संबंध में, मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि बाबा कम्प्यूटर्स को यह काम निविदा के आधार पर मिला. निविदा का प्रकाशन विभागीय सचिव ने मंत्री से अनुमति लिए बिना अपनी शक्ति से किया था. निविदा का निष्पादन विभाग द्वारा गठित निविदा समिति ने किया थ. अवधि विस्तार के समय संचिका मंत्री के रूप में मेरे पास आई. तत्कालीन विभागीय सचिव ने इस संबंध में विभिन्न पहलुओं का सांगोपांग विश्लेषण संचिका में किया है. तदुपरांत बाबा कम्प्यूटर्स को पुनः अवधि विस्तार मिला. यह पूर्णतः विधि के अनुरूप हुआ, मेरे निर्णय के अनुसार नहीं.
आहार पत्रिका का प्रकाशन
राशन उपभोक्ताओं तक विभागीय निर्णयों को पहुंचाने तथा उन्हें उचित दर पर राशन लेने का जो हक है, उसकी जानकारी देने तथा विभाग और सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों से लोगों को अवगत कराने के उद्देश्य से आहार पत्रिका प्रकाशित करने का निर्णय विभाग द्वारा लिया गया. आरंभ में सक्षम 3-4 संस्थाओं से इसके लिए कोटेशन प्राप्त किया गया.
न्यूनतम दर वाले संस्था का चयन किया गया. दर निर्धारण करने के लिए संचिका वित्त विभाग को भेजी गयी. वित्त विभाग ने इस पर मंतव्य दिया कि सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग से दर निर्धारित कराया जाय. सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने इस विषय पर विचार करते हुए जो दर निर्धारित किया, उसी आधार पर न्यूनतम दर वाली संस्था का चयन पत्रिका प्रकाशन के लिए हुआ.
उल्लेखनीय है कि वित्त विभाग और सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के मंत्री, तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ही थे. बेहतर होगा यदि एसीबी इस विषय में रघुवर दास जी से भी जानकारी प्राप्त कर ले या हो सकता है कि परिवाद के सत्यापन और इंटेलिजेंस रिपोर्ट के दौरान एसीबी ने ऐसा किया हो. पता नहीं एसीबी ने परिवाद पत्र सत्यापन और इंटेलीजेंसी रिपोर्ट (आईआर) बनाते समय विभाग से संचिका मंगाकर इस पर विचार किया या नहीं ? संभवतः इस पर विचार करने के उपरांत ही उन्होंने पीई के लिए सरकार से अनुमति मांगा है.
एसीबी ने मांगी: युगान्तर भारती को सरकार की ओर से कार्यादेश दिलाना
इस संबंध में मुझे यह कहना है कि मंत्री रहते समय अपने विभाग से किसी भी प्रकार के काम के लिए कोई भी आदेश युगान्तर भारती के पक्ष में नहीं दिया गया है. यह आरोप हास्यास्पद प्रतीत होता है कि मैंने वर्ष 2016-17, 2017-18 और 2018-19 में युगान्तर भारती से अनसेक्युर्ड लोन लिया है. पता नहीं इस बारे में एसीबी ने मेरा आयकर रिटर्न का विवरण और युगान्तर भारती के आयकर रिटर्न का विवरण आयकर विभाग से अथवा हमलोगों के कार्यालय से मंगाकर देखा है या नहीं. बिना ये विवरण देखे यदि इस बारे में एसीबी सरकार से पीई दर्ज कराने का आदेश लेना चाहता है तो इससे एसीबी अधिकारियों की बुद्धिमत्ता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा होगा.
सुनील शंकर को सेवा अवधि विस्तार देना
इस संबंध में समस्त जानकारी विभाग की संचिका में दर्ज है. पता नहीं एसीबी ने खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग से संचिका मंगाकर देखा है या नहीं. उल्लेखनीय है कि श्री सुनील शंकर सहित अन्य कई अवकाश प्राप्त अधिकारियों को विभाग ने अवकाश प्राप्त करने के बाद पुनः नियुक्त किया और ये हाल तक कार्यरत रहे हैं. अवकाश प्राप्त करने के उपरांत सुनील शंकर को पुनः नियुक्त करने से सरकार को कोई नुकसान हुआ है. एसीबी को चाहिए कि इस संबंध में विभाग के निर्णयों की तुलनात्मक अध्ययन के बाद सरकार को कोई वित्तीय हानि हुई या नहीं, इस बारे में पीई के लिए इजाजत मांगने के पहले एसीबी ने अवश्य विचार किया होगा.
एसीबी ने मांगी: त्वरित करे मामले का निपटरा
एक आरोप यह भी है कि युगान्तर भारती बिहार में पंजीकृत गैर सरकारी संस्था है और उसे झारखंड सरकार में काम मिला है. इस बारे में क्या उचित है और क्या अनुचित है तथा इसमें मेरी कोई भूमिका है या नहीं, इसकी जानकारी एसीबी ने सरकार के संबंधित विभाग से लिया है या नहीं, इसकी जानकारी मुझे नहीं है. यदि इसकी विवेचना किये बिना एसीबी ने पीई के लिए सरकार से अनुमति मांगा है तो इससे एसीबी अधिकारियों की प्रक्रियात्मक क्षमता पर सवाल खड़ा होता है.
मेरी मांग है कि एसीबी पीई करने में समय गंवाने के बदले सीधे प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई आगे बढ़ाए, विभाग से संचिका माँग ले, मुझसे एवं अन्य संबंधित लोगों सेपूछताछ कर लें और त्वरित गति से 15-20 दिनों में मामले का निपटारा कर दे.
रिपोर्ट: शाहनवाज