रांची: कृषि वैज्ञानिकों ने चिंताजनक मौसम की स्थिति में किसानों के लिए धान की सीधी बोवाई करने की सलाह दी है।
इस तकनीक का उपयोग करके कम पानी वाले खेतों में बिना कीचड़ और बिना बिचड़ा ही धान की खेती की जा सकती है।
यह खेती उपज को भी बढ़ावा देती है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में भी एरोबिक विधि से धान की खेती हो रही है, जो मजदूरों की कमी और वर्षा की असमानता की स्थिति में उपयोगी है।
विश्वविद्यालय के कुलपति और ख्याति प्राप्त धान विशेषज्ञ डॉ ओंकार नाथ सिंह ने बताया कि इस तकनीक में सिंचाई और जल जमाव की आवश्यकता नहीं होती है।
इसके अलावा, उन्होंने बताया कि इस तकनीक से जल जमाव करने वाली दूसरी विधि के मुकाबले खेतों में पानी बांधा जा सकता है, जिससे खर-पतवार करना आसान होता है।
धान के बीज की बुवाई के लिए, जब खेत में नमी होती है, तो सीड एंड फर्टिलाइज़र सीड ड्रील का उपयोग करना चाहिए।
अगर सीड ड्रील नहीं होती है तो छिटकवां विधि से बुवाई की जा सकती है। एक एकड़ में 10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। खाद की मात्रा 50:25:25 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से डाली जाती है।
खर-पतवार के नियंत्रण पर ध्यान देना चाहिए और इसके लिए खर-पतवार नाशी दवा प्रेटिलाक्लोर (4 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में) या पेंडीमिथेलीन दवा (एक लीटर प्रति 120 लीटर पानी में घोलकर) का छिड़काव करना चाहिए।
इस परियोजना में विवि के तीन प्रायोगिक शोध प्रक्षेत्रों में धान फसल उगाई गई है और इस तकनीक से प्राप्त उन्नत धान किस्मों का परीक्षण हो रहा है।
इन शोध प्रक्षेत्रों में इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट (आईआरआरआई), हैदराबाद से प्राप्त 150 से अधिक उन्नत धान किस्मों का परीक्षण किया जा रहा है।
परियोजना अन्वेषक (आईआरआरआई) डॉ कृष्णा प्रसाद बताते हैं कि एरोबिक विधि में धान की सीधी बोवाई के लिए सिंचाई और जल जमाव की आवश्यकता नहीं होती है।
यह तकनीक जल जमाव करने वाली दूसरी विधि की तुलना में आसान है और खर-पतवार को नियंत्रित करने में मदद करती है।