Patna– बिहार विधान मंडल के शीतकालीन सत्र की समाप्ति पर राष्ट्र गीत गाने से इनकार कर ए.आई.एम.आई.एम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) के विधायक अख्तरुल इस्लाम ने बिहार की राजनीति में गर्माहट ला दी है.
Highlights
विधायक अख्तरुल इस्लाम ने कहा है कि अब तक सत्र की समाप्ति की राष्ट्र गान से होती थी. लेकिन अब राष्ट्र गीत से इसकी समाप्ति कर एक नई पंरपरा कायम की जा रही है. राष्ट्र गान के प्रति हमारा पूरा सम्मान है, लेकिन राष्ट्र गीत गाना हमारे संविधान में कहीं भी अनिवार्य नहीं है. हमें अपने बुजुर्गों के द्वारा स्थापित पंरपरा को ही कायम रखनी चाहिए.
अख्तरुल इस्लाम के इस बयान पर भाजपा विधायक संजय सिंह ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि अख्तरुल इस्लाम यह तो बतायें कि वह राष्ट्र गीत क्यों नहीं गाएंगे. वंदेमातरम गाने में उनकी आपत्ति क्या है, उनकी मंशा ही गलत है. कहीं न कहीं कोई खोट नजर आता है.
भाजपा विधायक संजय सिंह ने कहा कि कोई अख्तरुल इस्लाम से पूछे कि उन्हे कहां का राष्ट्रगान अच्छा लग रहा है. अब कोई यह कहे कि देश का राष्ट्रीय पक्षी मोर को क्यों बनाया गया कबूतर क्यों नहीं?
इस मामले में विधान सभा अध्यक्ष, विजय सिन्हा ने कहा है कि यह पंरपरा तो लोकसभा में चल ही रहा है. राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत दोनें ही राष्ट्र के गौरव को बढ़ाता है, हमारी ऐतिहासिक क्षण को याद दिलाता है, हमें अपने विरासत पर गर्व करने का अवसर प्रदान करता है.
क्या है राष्ट्र गीत का इतिहास
ध्यान रहे कि भारत का राष्ट्र गीत “वंदे मातरम्” सन्यासी विद्रोह पर लिखित सुप्रसिद्ध कवि बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित उपन्यास “आनंदमठ” से लिया गया है . इसकी रचना 7 नवम्बर 1876 ई० को की गई थी. इसे पहली बार 1896 ई० में रविन्द्रनाथ टैगोर ने गाया था. भारत का राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् को दो भाषाओं “बंगाली और संस्कृत” में लिखा गया था. कांग्रेस कार्यकारणी की 1905 की बैठक में इसे पहली बार राष्ट्रगीत के रुप में मान्यता दी गई . 24 जनवरी 1950 ई० को भारत की संविधान द्वारा “वंदे मातरम्” के प्रथम दो छंदों को भारत के राष्ट्र गीत के रुप में मान्यता देने की आधिकारिक घोषिणा की गई थी.
रिपोर्ट-शक्ति