डिजीटल डेस्क : AMU (अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) का अल्पसंख्यक दर्जा रहेगा बरकरार, Supreme Court का अहम फैसला। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) का अल्पसंख्यक का दर्जा बरकरार रहेगा। शुक्रवार को Supreme Court ने इस संबंध में अपना फैसला सुना दिया है।
इस Supreme फैसले को सुनाते वक्त मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चार जजों की एक राय है जबकि 3 जजों की राय अलग है।
साथ ही कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक दर्जे की स्थिति का फैसला अब 3 जजों की नई बेंच करेगी। यानी अब AMU का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा या नहीं, इसका फैसला नियमित पीठ करेगी।
साल 1967 के अपने फैसले को Supreme Court ने पलटा
AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दिए अपने फैसले में Supreme Court ने साल 1967 में ‘अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य’ मामले में दिए अपने ही फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई संस्थान कानून के तहत बना है तो भी वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है।
AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को बनाए रखने फैसले पर जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस शर्मा ने अपनी असहमति जताई, जबकि CJI डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा इसके पक्ष में रहे।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने 4-3 के बहुमत से यह आदेश दिया। Supreme Court ने 4-3 के बहुमत से 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया जो AMU को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार करने का आधार बना था।
हालांकि, यह इस फैसले में विकसित सिद्धांतों के आधार पर AMU की अल्पसंख्यक स्थिति को नए सिरे से निर्धारित करने के लिए इसे 3 जजों की पीठ पर छोड़ दिया है। नई बेंच नियम और शर्तों के आधार पर विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक दर्जे की स्थिति का फैसला करेगी।
1967 में Supreme Court ने खारिज कर दिया था एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा
साल 1967 में अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ ने भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) का अल्पसंख्यक दर्जा खारिज कर दिया था। अपने 1967 के फैसले में Supreme Court ने कहा था कि – ‘जो संस्थान कानून के मुताबिक स्थापित किया गया है, वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा नहीं कर सकता है’।
Supreme Court ने 1967 के अपने उस फैसले को में कहा था कि – ‘चूंकि AMU केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता’।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में से खुद CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे के कायम रखने के पक्ष में तर्क दिए।
पीठ में शामिल जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने विपरीत तर्क दिए। हालांकि साल 1981 में सरकार ने AMU एक्ट में संशोधन कर विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा फिर से बरकरार कर दिया गया था।
जनवरी 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया जिसके तहत AMU को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था। Supreme Court ने अपने फैसले में कहा कि – ‘2006 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की वैधता तय करने के लिए 3 जजों की नई बेंच गठित करने के लिए मामले के कागजात CJI के समक्ष रखे जाएं’।
CJI ने अपने फैसले में यह भी कहा कि –‘अनुच्छेद 30 द्वारा प्रदत्त अधिकार पूर्ण नहीं है। इस प्रकार अल्पसंख्यक संस्थान का विनियमन अनुच्छेद 19 (6) के तहत संरक्षित है’।
CJI ने कहा कि – ‘महाधिवक्ता ने कहा है कि केंद्र प्रारंभिक आपत्ति पर जोर नहीं दे रहा है कि 7 जजों का संदर्भ नहीं दिया जा सकता। …इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव न करने की गारंटी देता है। …सवाल यह है कि क्या इसमें भेदभाव न करने के अधिकार के साथ-साथ कोई विशेष अधिकार भी है?’
8 दिनों की सुनवाई के बाद बीते 1 फरवरी में संविधान पीठ ने सुरक्षित रखा था फैसला…
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा मिला हुआ है, जो धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने तथा उनके प्रशासन का अधिकार भी देता है।
CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने 8 दिन तक दलीलें सुनने के बाद बीते 1 फरवरी को इस सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
बीते 1 फरवरी को AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के मसले पर देश की शीर्ष अदालत ने कहा था कि AMU एक्ट में 1981 का संशोधन, जिसने प्रभावी रूप से इसे अल्पसंख्यक दर्जा दिया, ने केवल आधे-अधूरे मन से काम किया।
बता दें कि इस प्रतिष्ठित संस्थान की स्थापना साल 1875 में सर सैयद अहमद खान की अगुवाई में मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में की गई थी। कई साल के बाद 1920 में, इसे एक विश्वविद्यालय में तब्दील कर दिया गया। बाद में इस प्रतिष्ठित संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति में बहाल नहीं किया।
एएमयू एक्ट, 1920 अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय की बात करता है जबकि 1951 के संशोधन के जरिए विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को खत्म करने का प्रावधान किया गया।