आजादी का जश्न और राजधानी रांची में बाबा साहब की वीरान मूर्ति

आज हम धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ अपनी आजादी का 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। आजादी के दीवाने अपने वीर सपूतों को नमन कर रहे हैं। उनकी कुर्बानियों को याद कर श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे है। राजधानी रांची का भी यही हाल है। हर चौक-चौराहे पर देश के लिए सर्वस्व कुर्बान करने वाले सपूतों को याद किया जा रहा है।

लेकिन इसके ठीक उलट राजधानी रांची में, झारखंड उच्च न्यायालय के ठीक सामने, इस देश को संविधान देने वाले, देश के करोड़ों लोगों की आस्था का केन्द्र बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की मूर्ति आज वीरान पड़ी है। सरकार के किसी भी नुमांइदे ने देश के इस सपूत को एक माला अर्पित करने की जहमत नहीं उठाई और यह तब है जब हम लगातार कानून की राज्य की मांग करते है, संविधान शासित समाज के निर्माण की कसमें खाते हैं।

हम आज जिस आजादी का उत्सव मना रहे हैं, वह आजादी हमें निर्बाध रुप से मिलता रहे, इसके लिए बेहद जरुरी है कि हम कानून और संविधान से शासित हो। बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर ने यही संविधान हमें दिया है। फिर राजधानी रांची में उनकी यह उपेक्षा, एक गंभीर सवाल खड़ा करती है।

वैसे एक स्थानीय रविदास समिति के सदस्यों द्वारा बाबा साहेब की मूर्ति पर माल्यार्पण जरुर किया जाता है, लेकिन मूल सवाल तो यह है कि जब यह मूर्ति झारखंड उच्च न्यायालय के ठीक सामने स्थापित है तब सरकारी महकमें की ओर से यह उपेक्षा क्यों की जाती है?

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