जनार्दन सिंह की रिपोर्ट
डिजीटल डेस्क : Haryana Election Result से ÇM Yogi का डॉयलाग सुर्खियों में छाया – बंटोगे तो…। मंगलवार को चौंकाने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम सामने आए के बाद एक सियासी डॉयलाग लगातार लोगों के जुबां पर चर्चा का विषय बना हुआ है। वह है उत्तर प्रदेश के ÇM Yogi के हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए भाषणों के चंद वाक्यांश।
ÇM Yogi की जम्मू एयरपोर्ट पर मौलाना से मुलाकात के दौरान संबोधन वाली बात हो या फिर ÇM Yogi की चर्चित पंच-लाइन – ‘बंटोगे तो कटोगे…घटोगे…’।
ÇM Yogi के यही वाक्यांश जनता के बीच नारे के रूप में गूंजने लगे और पलक झपकते ही कब तेजी से चर्चा का विषय बने, इसे प्रतिपक्षी खेमा भांप ही नहीं पाया। मंगलवार को चुनावी नतीजों के आने के बाद यही बात सियासी हलके मे चर्चा का विषय बना हुआ है।
पूरे चुनाव में आपस में बंटी रही रही कांग्रेस, नतीजा…
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत हों या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी – सभी के संबोधन के निचोड़ में वही निष्कर्ष रहा जो जनता के बीच हौले से बीच ÇM Yogi के डॉयलाग या नारे के रूप में तेजी से फैला – बंटोगे तो घटोगे। चर्चा हो रही है कि हरियाणा के दंगल में अगर कांग्रेस इस नारे का सियासी मतलब नहीं समझ पाई।
अगर कांग्रेस इसे समय रहते समझ पाती तो आसन्न हार के खतरे से बच सकती थी। चुनाव परिणाम आने से ऐन पहले तक हरियाणा में 60 सीटों पर जीत का दावा करने वाली कांग्रेस 37 पर सिमट गई है।
हरियाणा में कांग्रेस की हार की जो सबसे बड़ी वजह बताई जा रही है, वो उनके आपस में बंटना ही है। पूरे चुनाव में संगठन से लेकर सहयोगी तक के स्तर पर कांग्रेस पूरी तरह बंटी नजर आई।
पूरे चुनाव के दौरान सैलजा और आईएनडीआईए को भी हरियाणा में एक नहीं पाई कांग्रेस…
‘बंटोगे तो कटोगे…घटोगे…’ वाली बात हरियाणा चुनाव में भाजपा के विरोधी खेमे कांग्रेस ने इतने हल्के में लिया कि उसको अपनी जमीन धीरे से दरकती हुई मालूम भी नहीं पड़ी।
कांग्रेस को भाजपा से छिटके और भड़के जिन तुरुप के इक्कों पर थोड़ा-बहुत भरोसा था, वैसे दुष्यंत सिंह चौटाला से लेकर गोपाल कांडा और अन्य भी किनारे लग गए। जनता नहीं बंटी और भाजपा विरोधी कुनबा घटना गया।
इसी क्रम में कांग्रेस की अंदरूनी सच्चाई का भी लगातार जिक्र हो रहा है। राज्य की 5 बार की सांसद कुमारी सैलजा कांग्रेस की कद्दावर नेता हैं। पूरे चुनाव में सैलजा ने हुड्डा गुट के खिलाफ मोर्चा खोले रखा और राहुल गांधी तक ने भरे मंच पर दोनों के पैचअप की खूब कोशिश की।
राहुल ने मंच से दोनों के हाथ भी मिलवाए, लेकिन सब ढाक के तीन पात ही साबित हुए क्योंकि अंदरखाने उनके मन-मस्तिष्क मिले ही नहीं। सैलजा आखिर वक्त तक कांग्रेस से नाराज रहीं और उनके पोस्टर पर न तो हुड्डा गुट की तस्वीरें दिखी और न ही उन्होंने हुड्डा समर्थकों के लिए कोई रैली की।
हरियाणा के चुनाव परिणाम का इसका सीधा असर देखने को मिला है। एक तरफ जहां सैलजा की करीबियों को हार का सामना करना पड़ा है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस उन सीटों पर बुरी तरह हारी है, जहां दलितों की बाहुलता थी।
कांग्रेस को छोड़ इंडिया गठबंधन की 3 पार्टियां हरियाणा की सियासत में मजबूत स्थिति में मानी जा रही थीं। उनमें आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और सीपीएम का नाम शामिल हैं। कांग्रेस ने शुरुआत में इन तीनों ही दलों के साथ गठबंधन की कवायद की, लेकिन आखिर में पार्टी ने सिर्फ सीपीएम को साथ लिया।
कांग्रेस की बेरुखी पर आम आदमी पार्टी ने 88 सीटों पर खड़े किए थे प्रत्याशी
पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा और अजय माकन के दबाव में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं किया, जबकि सपा को भी पार्टी ने सीट देने से इनकार कर दिया था। गठबंधन टूटने के बाद आप ने 88 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए थे।
पूरे चुनाव में आम आदमी पार्टी को 1 प्रतिशत वोट मिली है। पार्टी के उम्मीदवार कई सीटों पर 10 हजार से ज्यादा वोट लाने में कामयाब रहे हैं। वर्ष 2024 में कांग्रेस और आप मिलकर लड़ी थी तो बीते लोकसभा चुनाव में विधानसभा की 90 में से 46 सीटों पर कांग्रेस और आप को बढ़त मिली थी।
इसी तरह हरियाणा के अहम अहीरवाल बेल्ट में कांग्रेस बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर पाई है। माना जा रहा है कि अगर यहां सपा को कुछ सीटें कांग्रेस ने दी होती और अखिलेश यादव से रैली कराई होती तो उसे कुछ सीटों का लाभ हो सकता था।
कांग्रेस की करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने बयान दिया है कि- ‘किसी भी चुनाव को हल्के में न लें। सब मिलकर अगर काम करेंगे तो इसका फायदा ज्यादा होगा’।
इसी क्रम में सियासी हलके में एक और दिलचस्प बात कही जा रही है कि कांग्रेस अपने अतीत से भी सबक नहीं ले पाई है। कारण कि हिमाचल को छोड़ दे तो पिछले 5 सालों में कांग्रेस हिंदी पट्टी के किसी भी राज्य में अकेले नहीं जीत पाई है।
वर्ष 2023 के आखिर में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव हुए थे। वहां पर कांग्रेस अकेले मैदान में उतरी तो तीनों ही राज्यों में करारी हार का सामना करना पड़ा।
उसी तरह वर्ष 2022 में कांग्रेस यूपी, उत्तराखंड और पंजाब में अकेले मैदान में उतरी थी और उन तीनों ही राज्यों में भी नहीं जीत पाई।
इसके उलट लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के साथ जब कांग्रेस लड़ी तो परिणाम चौंकाने वाले रहे। राजस्थान में कांग्रेस को 8 सीटों पर जीत मिली और हरियाणा में पार्टी ने 5 सीटों पर जीत हासिल की थी।
पनौती रूप में फिर से कांग्रेसी बने अशोक तंवर की भी चर्चा, निगाहें झारखंड और महाराष्ट्र चुनाव पर…
इसी क्रम में अब माना जा रहा है कि कांग्रेस के लिए आगे की राह आसान नहीं है। इसी साल के अंत में महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा के चुनाव होने हैं। दोनों ही जगहों पर कांग्रेस का बार्गेनिंग पावर कम होगा।
अभी तक कांग्रेस महाराष्ट्र में खुद को मजबूत स्थिति में बताकर सीएम पद पर दावा ठोक रही थी, लेकिन अब हरियाणा के जनादेश ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी है। कांग्रेस महाराष्ट्र और झारखंड में अगर अपनी शर्तों पर आगे बढ़ती है तो यहां पर भी हरियाणा की तरह ही खेल हो सकता है।
इसी क्रम में हरियाणा चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस में हाल में शामिल हुए अशोक तंवर को लेकर भी है। उन्हें सियासी हल्के में आखिरी क्षणों में कांग्रेस के लिए पनौती तक बताया जा रहा है।
दरअसल तंवर दिल्ली में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के संपर्क में थे और एक दिन पहले ही उनकी पार्टी में वापसी की राह तैयार हुई। जैसे ही राहुल गांधी अपना भाषण समाप्त कर रहे थे, मंच से एक घोषणा की गई जिसमें उपस्थित लोगों से कुछ मिनट प्रतीक्षा करने को कहा गया। इसके तुरंत बाद तंवर (48) मंच पर आए और घोषणा की गई कि आज उनकी घर वापसी हो गई है।
तंवर को एक समय राहुल गांधी का करीबी माना जाता था। दलित समुदाय के नेता तंवर की कांग्रेस में वापसी से पार्टी को मजबूती मिलने की संभावना थी। बता दें कि अशोक तंवर इस साल की शुरुआत में भाजपा में शामिल हुए थे।
उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ मतभेदों के बाद 2019 में पार्टी छोड़ दी थी। 5 अक्टूबर को होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार शाम छह बजे समाप्त होने से कुछ घंटे पहले वह पार्टी में शामिल हुए।
अशोक तंवर का अब तक का सियासी करियर देखें तो वह पुराने दल-बदलु हैं। अशोक तंवर अप्रैल 2022 में आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हुए थे। आप में शामिल होने से पहले वह कुछ समय के लिए तृणमूल कांग्रेस में भी रहे थे।
भाजपा में शामिल होने के बाद तंवर ने मई में सिरसा लोकसभा सीट से कांग्रेस नेता कुमारी सैलजा के खिलाफ चुनाव लड़ा था। भाजपा ने सिरसा से निवर्तमान सांसद सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर तंवर को मुकाबले में उतारा था।