Ghatsila सीट का पूरा लेखा-जोखा, जेएमएम या बीजेपी, कौन मारेगा इस बार बाजी, जाने…

Ranchi : झारखंड में लोकसभा चुनाव खत्म होने के साथ ही आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है. आज हम बात करेंगे पूर्वी सिंहभूम के घाटसिला (Ghatsila) विधानसभा सीट की कि यहां की राजनीतिक एजेंडे क्या होंगे, क्या समीकरण बन रहें है लोगों के मुद्दें को करीब से जानेंगे.
चुनाव लड़ने  में सबके अपने अपने दावे और मुद्दे होते हैं ठीक उसी तरह समीकरण भी विधानसभा सीटों में अलग-अलग है. पार्टियां जाति और विचारधारा में बंटे मतदाताओं को साधने का कसरत करते दिख रहे है। हर क्षेत्र के अपने लोकल मुद्दे हैं और स्थानीय लोगों का अपना मिजाज भी है। झारखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगरमी तेज हो गयी है. इंडिया और एनडीए गठबंधन सियासी बिसात पर चाल चलाने लगे हैं. तो बीजेपी ने दो दिग्गज केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व सरमा को प्रभारी बनाकर झारखंड भेजा गया है।
Ghatsila : एसटी के लिए आरक्षित है घाटशिला विधानसभा सीट
झारखंड में घाटशिला विधानसभा सीट झामुमो ने कांग्रेस से छीन ली थी. घाटशिला को अरसे से जिला बनाने की मांग की जा रही है. घाटशिला विधानसभा एसटी आरक्षित सीट है. अलग झारखंड राज्य गठन के पूर्व और बाद में इस सीट पर कांग्रेस की दखल रही है. प्रदीप कुमार बालमुचू वर्ष 1995 से 2005 तक इस सीट से लगातार विधायक चुने जा चुके हैं.  कांग्रेस में यहां से इनकी मजबूत पकड़ रही है. साल 2009  के चुनाव में  झामुमो के रामदास सोरेन ने कांग्रेस से यह सीट छीनकर अपने नाम कर लिया था.
साल 1975 से लेकर 1980 सीपीआई के टीका राम माजी घाटशिला विधानसभा सीट से लगातार विधायक रहे तो वहीं 1985 में हुए चुनाव में  कांग्रेस के करण चंद्र मार्डी इस  सीट से विधायक बनते है. वहीं 1990  में हुए विधानसभा चुनाव में  सूर्य सिंह बेसरा जीत दर्ज करते है तो वहीं 1995 में एक बार फिर से कांग्रेस इस इस पर बाजी मारती है और कांग्रेस  के टिकट पर चुनाव लड़ रहे प्रदीप कुमार बलमुचू विजयी हुए थे।
Ghatsila : 1995 से लगातार तीन बार कांग्रेस के प्रदीप बलमुचू जीते हैं
साल 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में कांगेस से प्रदीप कुमार बलमूचु एक बार फिर से चुनावी मैदान थे तो वहीं बीजेपी से बैज मुर्मू वहीं भाकपा से बबलू मुर्मू और झामूमो से शंकर चंद हेम्ब्रम मैदान में थे. हालांकि घाटशिला सीट पर अपनी गजब की पकड़ रखने वाले प्रदीप कुमार बालमूचु सभी को पछाड़ते हुए जीत हासिल की। उसके बाद  2005 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर एक बार फिर से कांग्रेस प्रदीप कुमार बालमुचू चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे थे पर निर्दलीय चुनाव लड़ रहें राम दास सोरेन जो इस चुनाव दूसरे स्थान पर थे. रामदास सोरेन को प्रदीप कुमार बलमूचु ने 16,447 वोटों के अंतर से शिकस्त देते है।
 2009 में हुए घाटशिला सीट पर विधानसभा चुनाव में  2005 में निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले रामदास सोरेन दूसरे स्थान पर थे और प्रदीप कुमार बालमूचु को कड़ी टक्कर दी थी, तो वहीं इस बार रामदास सोरेन ने झामूमो का दामन था. जेएमएम ने बार इस सीट पर रामदास सोरेन को मौका दिया और वहीं कांग्रेस से तीसरी बार प्रदीप कुमार बालमूचु  और बीजेपी ने सूर्य सिंह बेसरा पर दांव खेला था. लेकिन इस बार के नतीजे देखने लायक थे। लंबे समय से इस सीट पर दबदबा बनाये प्रदीप कुमार बालमूचु को रामदास सोरने ने कड़ी टक्कर देते हुए 1,192 वोटों के अंतर से हराया था।
Ghatsila : पिछले चुनाव में जेएमएम ने जमाया कब्जा
साल 2014 में झामुमो एक बार फिर से चुनावी मैदान में प्रबल चेहरे के रूप में रामदास सोरेन को मौका देती है तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी लक्ष्मण टुडू पर दांव खेलती है और पिछला चुनाव हार चुके प्रदीप कुमार बलमूचु टिकट ना देकर कांग्रेस इस बार सिंड्रेला बालमूचु को मौका देती है। पर एक बार फिर से कांग्रेस के हाथ से ये सीट फिसल कर बीजेपी के हाथ में चली गई। घाटशिला सीट से  बीजेपी के लक्ष्मण टुडू विधायक बन गए।
पिछले 2019 के विधानसभा चुनाव में भी यहां से झामुमो के रामदास सोरेन चुनाव जीते हैं. घाटशिला विधानसभा सीट पर झामुमो ने अपना झंडा गाढ़ा था तो वहीं भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था. झामुमो के रामदास सोरेन को 63,340 मत मिले . वहीं दूसरे नंबर पर रहे भाजपा प्रत्याशी लखन मार्डी को 56,725 मत मिले थे. पिछले चुनाव में झामुमो-कांग्रेस में गठबंधन था. हालांकि कांग्रेस के प्रदीप बलमुचू बागी बन कर आजसू से चुनाव लड़े थे. उन्हें 31,910 वोट मिले थे. इंडिया गठबंधन में यह सीट झामुमो के खाते में जाती रही है.
Ghatsila : वर्षों से उठ रही है घाटसिला को अलग जिला बनाने की मांग
वैसे तो घाटशिला विधानसभा क्षेत्र में मुद्दे कई हैं. लेकिन अलग जिला की मांग सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है. घाटशिला अनुमंडल में सात प्रखंड घाटशिला, धालभूमगढ़, मुसाबनी, गुड़ाबांदा, चाकुलिया, बहरागोड़ा और डुमरिया हैं. इन प्रखंडों को मिलाकर घाटशिला जिला बनाने की मांग कई सालों से उठती रही हैं. लोगों का कहना है कि भौगोलिक दृष्टिकोण, आबादी, क्षेत्रफल के हिसाब से यह मांग जायज है. बहरहाल देखना वाली बात होगी कि यहां होने वाले विधानसभा चुनाव में जनता किस पर विश्वास जताती है और किसे अपना विधायक चुनती है। इस सीट पर जेएमएम के लिए रामदास सोरेन से बड़ा चेहरा कोई नहीं है तो वहीं बीजेपी किस चेहरे पर दांव खेलती है इसके लिए इंतजार करना पड़ेगा.
इस क्षेत्र की समस्याएं
• यह विधानसभा क्षेत्र कृषि प्रधान होते हुए भी कई समस्यों का सामना कर रहा है.
• 40 साल से स्वर्णरेखा परियोजना पूरी नहीं हो सकी है. सिंचाई की बेहतर सुविधा होती तो किसान सालों फसल की उपज कर पाते
• घाटशिला कॉलेज में 15 हजार से अधिक विद्यार्थी हैं, पर यहां मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. यहां आज तक बीएड कॉलेज खोलने की मान्यता नहीं मिली
• धालभूमगढ़ में एयरपोर्ट का मामला आज भी अधर में है.
बंद खदानें खोलना भी है एजेंडा
जाने अबतक इस सीट से कौन-कौन विधायक रहे हैं
1972: टीका राम माझी- सीपीआई
1977: टीका राम माझी- सीपीआई
1980: टीका राम माझी-सीपीआई
1985: करण चंद्र मार्डी-कांग्रेस
1990: सूर्य सिंह बेसरा-भारत
1995: प्रदीप बलमुचू-कांग्रेस
2000 और 2005 प्रदीप बलमुचू-कांग्रेस
2009-रामदास सोरेन-जेएमएम
2014-लक्ष्मण टुडू-बीजेपी
2019-रामदास सोरेन-जेएमएम

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